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________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...35 सुपरिणाम __इस मुद्रा के द्वारा ज्ञान मुद्रा के सभी परिणाम हासिल होते हैं। इसके अतिरिक्त इस मुद्रा का निम्न चक्रों आदि पर भी अद्भुत प्रभाव पड़ता है जिससे अध्याय-1 के अनुसार अनेक लाभ होते हैं चक्र- मणिपुर, अनाहत एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि, वायु एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- एडीनल, पैन्क्रियाज, थायमस एवं प्रजनन ग्रंथि केन्द्रतैजस, आनंद एवं स्वास्थ्य केन्द्र। • शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा, दमा, एलर्जी, खून की कमी, खसरा, मधुमेह, हर्निया, दाद-खाज, बुखार, नपुंसकता, अल्सर, पाचन समस्या, हृदय, छाती, फेफड़ें, प्रजनन अंग, वायु, पाचन आदि के विकारों का शमन करती है। • मानसिक स्तर पर इस मुद्रा के द्वारा निष्क्रियता, नशे की लत, असंतुष्टि, निर्ममता आदि भावनात्मक समस्याओं का निवारण होता है। ध्यान के क्षेत्र में विशेष प्रगति होती है और ज्ञान चेतना ध्यान के अभिमुख होकर आत्म सुख का आस्वादन करती है। 1.3 ज्ञान वैराग्य मुद्रा यह ज्ञान मुद्रा का तीसरा प्रकार है। ज्ञान का अग्रिम पगथिया वैराग्य है इसलिए यह मुद्रा ज्ञान मुद्रा के साथ की जाती है। इस मुद्रा के माध्यम से वैराग्य भाव को जागृत एवं परिपुष्ट करने का प्रयास किया जाता है। मोक्षार्थियों के लिए यह मुद्रा अत्यन्त उपयोगी है। सम्यक ज्ञान पूर्वक उत्पन्न होने वाला वैराग्य ही वीतराग अवस्था का जनक होता है। इस अपेक्षा से यह मुद्रा सम्यक ज्ञान से सम्यक दर्शन (वैराग्य भाव) और सम्यक दर्शन से सम्यक चारित्र (वीतराग भाव) की भूमिका पर अवस्थित होने के लिए की जाती है। विधि सर्वप्रथम पद्मासन, सिद्धासन अथवा किसी भी अनुकूल आसन में बैठकर दोनों हाथों से पूर्ववत ज्ञान मुद्रा बनाएं। फिर ज्ञान मुद्रा युक्त दाहिने हाथ को हृदय (आनन्द केन्द्र-अनाहत चक्र) के पास रखें तथा ज्ञानमुद्रा युक्त बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखने से ज्ञान-वैराग्य मुद्रा बनती है।
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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