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________________ 446... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन रसानुभूति एवं कोमल संवेदनाओं को उत्पन्न करती है, उदारता, सहकारिता परमार्थ परायणता आदि गुणों का निर्माण करती है, कामेच्छाओं का नियमन कर आध्यात्मिक एवं बौद्धिक विकास में सहायक बनती है। • आनंद एवं ज्योति केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा कषाय, नोकषाय, कामवासना, उत्तेजना आदि का उपशमन करती है। भावों को निर्मल एवं परिष्कृत बनाती है। • थायमस एवं पिनियल ग्रन्थि के स्राव को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा बालकों के विकास एवं कामेच्छा नियंत्रण में विशेष सहायक बनती है। मुद्रा विशेषज्ञों के अनुसार मुद्राओं में रहा हुआ आध्यात्मिक पुट उन्हें अधिक प्रभावी बनाता है। इन्हें धारण करते समय व्यक्ति के भीतर स्वयमेव ही सकारात्मक विचारों का उद्भव होता है। आन्तरिक जगत की यही निर्मलता बाह्य जीवन में भी कल्याण भावों का विस्तार करती है । ऐन्द्रिक सुखों की उपलब्धि करवाती है। इन मुद्राओं का हमारे आभ्यंतर एवं बाह्य व्यक्तित्व के समुत्थान में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा हुआ है। सन्दर्भ-सूची 1. GDE, एसोटेरिक मुद्राज़ ऑफ जापान, गौरी देवी, पृ. 38 2. LCS, पृ. 148 4. GDE, पृ. 42 5. ( क ) GDE, पृ. 146 6. LCS, पृ. 181 7. (क) GDE, पृ. 21 8. LCS, पृ. 119 9. GDE, पृ.67 11. GDE, पृ. 85 13. GDE, पृ. 51 14. (क) GDE, पृ. 53 15. (क) GDE, पृ. 328 16. GDE, पृ. 31 17. (क) GDE, पृ. 300 18. (क) GDE, पृ. 284 3. LCS, पृ. 181 (ख) LCS, पृ. 144 (ख) LCS, पृ. 144 10. GDE, पृ. 12. GDE, पृ. 79 (ख) LCS, पृ. 72 (ख) LCS, पृ. 208 (ख) LCS, पृ. 257 (ख) LCS, पृ. 255
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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