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________________ गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...417 91. सौ-को-शु-गौ-इन् मुद्रा धर्म क्रियाओं से सम्बन्धित यह मुद्रा बुराईयों एवं राक्षसों के विनाश की सूचक मुद्रा है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि बायीं हथेली को बाहर की तरफ रखते हुए अंगूठे को हथेली में मोड़े, . मध्यमा और अनामिका को अंगूठे के ऊपर मोड़े रखें, तर्जनी और कनिष्ठिका को प्रथम एवं द्वितीय जोड़ से झुकायें, तीसरे को सीधा रखें। ____ दायें अंगूठे को भी हथेली के अन्दर मोड़ते हुए मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को अंगूठे के ऊपर झुकायें रखें तथा तर्जनी बायें हाथ की तरफ दर्शाती रहें, तब उपरोक्त मुद्रा बनती है।109 सुपरिणाम सी-की-शु-गौ-इन् मुद्रा • इस मुद्रा को धारण करने से जल एवं वायु तत्त्व प्रभावित होते हैं। यह शरीर को निरोगता प्रदान करते हुए मूत्र पिंड, प्रजनन अंग, लसिका ग्रंथियों को स्वस्थ रखती है। • स्वाधिष्ठान एवं अनाहत चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा उत्सर्जन एवं विसर्जन के कार्य को नियंत्रित करती है। इससे बलिष्ठता एवं स्फूर्ति बढ़ती है। यह अतिरिक्त ऊर्जा देकर उदारता, सहकारिता, संवेदनशीलता
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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