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________________ गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...305 मस्तक में गोदकर उसे चलाया (हाँका) जाता है, वह अंकुश कहलाता है। यहाँ अंकुश का अभिप्राय सामान्य नियन्त्रण और शस्त्रकृत नियन्त्रण भी हो सकता है। इतना स्पष्ट है कि यह मुद्रा किसी को अपने अनुकूल बनाने अथवा नियन्त्रित करने के प्रयोजन से की जाती है। इस तान्त्रिक मुद्रा का प्रयोग जापानी बौद्ध परम्परा में होता है तथा गर्भधातु मण्डल, वज्रधातु मण्डल, होम क्रिया तथा अन्य धार्मिक क्रियाओं में किया जाता है। विधि हथेलियों को एक-दूसरे की ओर अभिमुख करें। अंगुलियाँ और अंगूठे हथेली के अंदर एक-दूसरे में गुम्फित हो तथा दायें हाथ की तर्जनी ऊपर की ओर उठी हुई और हल्की सी मुट्ठी की ओर झुकी हुई रहने पर अंकुश मुद्रा बनती है। सुपरिणाम • यह मुद्रा जल एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए शरीर को शक्तिशाली, कान्तियुक्त, स्निग्ध बनाती है तथा रूक्षता, जड़ता, मोटापा, दुर्बलता आदि को दूर करती है। • स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा शारीरिक आरोग्य, कार्य दक्षता एवं कुशलता प्रकट करती है तथा शरीरस्थ जल एवं फॉस्फोरस का नियमन कर नाभि को यथास्थान स्थित करती है। • गोनाड्स के स्राव को नियंत्रित करते हुए शारीरिक विकास को सहज एवं सरल बनाती है तथा प्रजनन कार्य, वन्ध्यत्व निवारण एवं स्त्रित्व सम्बन्धी समस्याओं का उन्मूलन करती है। 6. अनुज मुद्रा अनुज अर्थात छोटा भाई। इस मुद्रा के द्वारा संभवत: छोटे भाई का स्मरण अथवा अपनी लघुता को प्रदर्शित किया जा सकता है। यह एक तान्त्रिक मुद्रा है जिसे जापान के बौद्ध अनुयायियों द्वारा गर्भधातु मण्डल के धार्मिक क्रियाओं के दरम्यान मंत्रोच्चार पूर्वक धारण की जाती है। दर्शाये चित्र से स्पष्ट होता है कि यह मुद्रा ध्यान मुद्रा से मिलती-जुलती और अग्रज मुद्रा के विपरीत है।
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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