SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय बौद्ध में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप एवं उनका महत्त्व ...289 विकार आदि को दूर करती है। • एड्रिनल, थायरॉइड एवं पीयूष ग्रन्थि के स्राव का नियंत्रण करते हुए आर्थराइटिस, रियुमेटिजम, लकवा, मोटापा, वाणी दोष, कोलेस्ट्रोल आदि को संतुलित करती है। 13. नैवेद्य मुद्रा वज्रायना देवी तारा की पूजा करते समय प्रारंभ में पाँच द्रव्य चढ़ाये जाते हैं उनमें से यह एक है। यहाँ नैवेद्य शब्द अर्पण और भोजन उभय का बोधक है। इसका मंत्र है- 'ओम् गुरु सर्व तथागत नैवेद्य पूजा मेघा-समुद्र-स्फरणा समये हुम्।' ____ यह संयुक्त मुद्रा है और दोनों हाथों में समान मुद्रा होती है। विधि __ हथेलियों को मध्यभाग की तरफ रखें, मध्यमा को छोड़कर शेष अंगुलियों की मुट्ठी बांधे, मध्यमा को ऊपर सीधा रखें तथा दोनों हाथों को छाती के स्तर पर समीप रखने से नैवेद्य मुद्रा बनती है।15 नैवेध मुद्रा
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy