SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 282... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि हथेलियाँ मध्यभाग की ओर, अंगूठे हथेली के भीतर मुड़े हुए, मध्यमा और अनामिका के अग्रभाग अंगूठों के अंतिम पोर को स्पर्श करते हुए, तर्जनी और कनिष्ठिका ऊपर उठी हुई रहें । बायां हाथ शरीर के निकट रहें और दायां हाथ उसको क्रॉस करता हुआ कलाई की जगह पर रहें, तब होह मुद्रा कहलाती है। सुपरिणाम · होह् मुद्रा करने से वायु तत्त्व संतुलित रहता है । यह कुपित वायु, गठिया, साइटिका, वायुशूल, लकवा आदि रोगों का निवारण करती है। • अनाहत चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा वक्तृत्व, कवित्व एवं इन्द्रिय निग्रह आदि में विकास करती है। • आनंद केन्द्र एवं थायमस ग्रंथि के स्राव को संतुलित कर मानसिक स्थिति को निर्मल एवं परिष्कृत करती है । 8. हम् मुद्रा यह मुद्रा भी भारत की वज्रायन बौद्ध परम्परा से सम्बन्धित है। यह वज्रायना देवी तारा के समक्ष प्रार्थना के रूप में की जाती है तथा प्रार्थना मन्त्र धूम् मुद्रा
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy