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________________ 270... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि दायी हथेली को बाहर की तरफ अभिमुख करें, अंगूठा और तर्जनी के अग्रभागों को मिलायें तथा मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को शिथिल रूप से ऊपर दिशा में फैलाने पर वितर्क मुद्रा बनती है।85 सुपरिणाम ___यह मुद्रा करने से अग्नि एवं आकाश तत्त्व प्रभावित होते हैं। इससे शरीरनाड़ी शद्धि, हृदय शक्तिशाली, पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता का वर्धन होता है। • मणिपुर एवं आज्ञा चक्र को जागृत करते हुए अग्नि तत्त्व एवं पाचक रसों का उत्पादन करती है। इससे शरीरस्थ रक्त, शर्करा, जल, सोडियम, वायु एवं आकाश तत्त्व का संतुलन होता है। • दर्शन एवं तैजस केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा पूर्वाभास एवं अतिन्द्रिय क्षमताओं का विकास करती है। इस अध्याय में चर्चित मुद्राएँ यद्यपि विशेष रूप से जापानी बौद्ध परम्परा की पूजा-उपासना पद्धति में प्रचलित है परन्तु इनमें से अधिकांश मुद्राएँ नामान्तर के साथ अन्य परम्पराओं में भी प्राप्त होती है। इन मुद्राओं के प्रयोग का मुख्य ध्येय दैवी साधना में आंतरिक रमणता एवं उनके भावों का अधिग्रहण है। परन्तु जिस प्रकार खेती के साथ घास की प्राप्ति सहज रूप में हो जाती है वैसे ही मुद्रा साधना के द्वारा आंतरिक समाधि के साथ बाह्य स्वस्थता स्वयमेव ही प्राप्त हो जाती है। सन्दर्भ-सूची 1. LCS, पृ. 239 2. हिन्दी शब्द सागर, भाग-1, पृ. 173 3. LCS, पृ. 58 4. (क) GDE, एसोटेरिक मुद्राज़ ऑफ जापान, गौरी देवी, पृ. 334 (ख) LCS, पृ. 265 5. LCS, पृ. 210 6. हिन्दी शब्द सागर, भाग-1, पृ. 100 7. (क) GDE, पृ. 333 (ख) LCS, पृ. 210 8. LCS, पृ. 64 9. (क) GDE, पृ. 398 (ख) LCS, पृ. 278
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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