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________________ जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...265 जागृत करते हुए वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रियजय में वर्धन, हृदय सम्बन्धी रोगों का शमन, स्मरण शक्ति को तीव्र, बुद्धि को एकाग्र तथा चित्त को शान्त बनाती है। • पिच्युटरी एवं थायरॉइड ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा हिचकी, स्नायुओं की ऐंठन, सुस्ती, शारीरिक रूक्षता आदि में लाभ करती है। द्वितीय प्रकार __ वज्र मुद्रा का द्वितीय प्रकार हीरे (रत्न) का सूचक है। इस दूसरे प्रकार में दायी हथेली को सामने की ओर अभिमुख कर अंगूठा और कनिष्ठिका के अग्रभागों को मिलायें तथा शेष अंगुलियों को ऊर्ध्व दिशा में प्रसरित करने पर वज्रमुद्रा का दूसरा प्रकार बनता है।81 वज मुद्रा-2 सुपरिणाम • जल एवं वायु तत्त्व को संतुलित कर यह मुद्रा प्रजनन अंग, ग्रंथि केन्द्र, मूत्र पिंड, हृदय, फेफड़ें आदि का नियमन करती है। शरीर को स्वस्थ, स्निग्ध एवं कांतियुक्त बनाती है। स्वभाव को शांत, मृदु एवं कोमल बनाती है। . स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र को सक्रिय बनाते हुए शरीर में तापमान एवं कैल्सियम का नियंत्रण कर शक्ति उत्पादन करती है। पेट के पर्दे के नीचे स्थित अवयवों के कार्य का नियमन करती है। कण्ठ को मधुर एवं सुरीला बनाती है।
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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