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________________ जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...241 अधोमुख करें। इसमें दायां हाथ बायें के ऊपर मंडराता हुआ रहता है। अत: इसे 'ओग्यौ-इन्' मुद्रा कहते हैं।58 सुपरिणाम • यह मुद्रा जल एवं आकाश तत्त्वों का संतुलन स्थापित करती है। शरीर में स्थित विजातीय एवं विषद्रव्यों का निष्कासन करती है। हृदय एवं रक्त संचरण सम्बन्धी समस्याओं का भी निवारण करती है। • यह मुद्रा सहस्रार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत एवं जल तत्त्व को संतुलित करते हए समस्त ग्रंथियों का सम्यक संचालन करती है तथा पेट के नीचे के अवयवों के कार्य का नियमन करती है। • एक्यूप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार यह मुद्रा आन्तरिक ज्ञान का विकास करते हुए हृदय की सुकुमारता एवं मनोबल में वृद्धि करती है। इससे नेतृत्व गुण एवं निर्णयात्मक शक्ति आदि का विकास भी होता है। द्वितीय स्थिति ___इस दूसरे प्रकार में दायां हाथ पूर्ववत एवं बायें हाथ की मध्यमा, अनामिका एवं कनिष्ठिका हथेली में मुड़ी हुई, अंगूठा उनके ऊपर तथा तर्जनी मध्य भाग की तरफ प्रसरित रहती है।59 ओंग्यी-इन् मुद्रा-2
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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