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________________ जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप सुपरिणाम • यह मुद्रा धारण करने से अग्नि एवं वायु तत्त्व संतुलित रहते हैं। इससे कुपित वायु, गठिया - साइटिका, वायुशूल, लकवा आदि रोगों का निवारण तथा घुटने-जोड़ों आदि में सन्धिवात से होने वाला दर्द समाप्त होता है । • मणिपुर एवं अनाहत चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा बाह्य एवं आन्तरिक गुणों का विकास करती है, ध्यान में चित्त को एकाग्र एवं शान्त रखती है तथा प्रेम, करुणा, मैत्री के भावों का जागरण करती है। • थायमस, एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा बच्चों में उल्लास, कुशाग्र बुद्धि आदि का विकास करती है और B. P., एसिडिटी, पित्त, उल्टी आदि का निवारण करती है। ...199 20. बसर - उन् - कोंगौ- इन् मुद्रा- 1 यह मुद्रा भारत में ‘बसर - उन्- कोंगौ- इन्' मुद्रा और 'वज्रहुंकर' मुद्रा तथा चीन में 'अन् - युह - लो-हंग' मुद्रा के नाम से जानी जाती है। बसर- उन्- कोंगी-इन् मुद्रा- 1
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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