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________________ अध्याय-8 जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप मुद्रा प्रयोग एक सार्वभौमिक विधान है। आर्य सभ्यता में ही नहीं अपितु विश्व की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में मुद्रा विज्ञान समादरित है। इसके अस्तित्व एवं महत्त्व को स्वीकार करते हुए जापान जैसा विकसित देश भी अपनी दैनिक चर्या में मुद्राओं को विशेष स्थान प्रदान करता है। मुद्रा प्रयोग मानव के सर्वांगीण उन्नति में प्रेरक बनती है तथा भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रगति पथ पर आरूढ़ करती है। 1. अभिषेक गुह्य मुद्रा यह हस्त मुद्रा जापानी बौद्ध परंपरा में भक्त एवं पुजारी के द्वारा धारण की जाती है। यह एक तान्त्रिक मुद्रा है। विधि दोनों हथेलियों को आमने-सामने रखकर मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को एक-दूसरे में अन्तर्ग्रथित करें, तर्जनी के अग्रभागों को एक-दूसरे से स्पर्श करवायें तथा अंगूठे बाहर की तरफ से Side में जुड़े हुए रहने पर, वह अभिषेक गुह्य मुद्रा कहलाती है।' सुपरिणाम • यह मुद्रा करने से शरीरगत अग्नि एवं वायु तत्त्व प्रभावित होते हैं। इससे गैस संबंधी विकृतियाँ तत्क्षण शान्त होती है। मन की स्थिरता एवं एकाग्रता में विकास होता है। मस्तिष्क का स्नायुतंत्र शक्तिशाली बनता है। सिरदर्द, अनिद्रा आदि रोगों का शमन होता है। • मणिपुर एवं अनाहत चक्र को जागृत कर यह मुद्रा आध्यात्मिक एवं शारीरिक बल एवं इन्द्रिय जय आदि के वर्धन में सहायक
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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