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________________ अध्याय-7 म-म-मडोस सम्बन्धी मुद्राओं का प्रयोग कब और क्यों? बौद्ध पूजा-उपासना में वज्रायना देवी तारा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। म-ममड़ोस में समाविष्ट छः मुद्राएँ विशिष्ट पूजनों में प्रयुक्त की जाती है। भगवान बुद्ध के अतिशय युक्त ज्ञान प्रकाश के द्वारा जीवन के शुद्धिकरण में यह मुद्राएँ विशेष प्रेरक है। संस्कृत मंत्रों का प्रयोग इनकी प्रभावकता को अधिक बढ़ाता है। टोरमा आदि द्रव्यों का अर्पण बौद्ध धर्म में द्रव्यपूजा के अस्तित्व का भी द्योतक है। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार इनका स्वरूप निम्न प्रकार है। 1. सर्व धर्मः मुद्रा बौद्ध परम्परा में 'म-म-मडोस' नाम की एक क्रिया होती है। उसमें छः प्रकार की मुद्राओं का प्रयोग होता है । म-म-मडोस सम्बन्धी छः मुद्राओं में से यह पहली मुद्रा है। इसे धर्मराज्य की शुद्धता का सूचक माना गया है। विशेष रूप से शुभ्र टोरमा अर्थात पूजा आदि के दरम्यान वज्रायना देवी तारा के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले द्रव्य विशेष का सूचक है। यह संयुक्त मुद्रा नाक के स्तर पर धारण की जाती है। मुद्रा मंत्र यह है- 'ओम् स्वभाव शुद्धम्, सर्व धर्मः स्वभाव शुद्धो हुम्।' विधि अंजलि मुद्रा की भाँति हथेलियों, अंगुलियों और अंगूठों को परस्पर मिलाना, सर्व धर्मः मुद्रा है । 1 सुपरिणाम • यह मुद्रा पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व को प्रभावित करती है। इससे हड्डियों, मांसपेशियों, त्वचा एवं शारीरिक अवयवों के विकास में सहयोग मिलता है।
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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