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________________ 126... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन पोर मध्यमा और अनामिका के प्रथम पोर को स्पर्श करता हुआ रहे, बायीं तर्जनी दायी हथेली की तरफ निकट में रहे। इस भाँति वज्र मृदंगे मुद्रा बनती है।15 सुपरिणाम • यह मुद्रा करने से अग्नि, जल एवं आकाश तत्त्व संतुलित होते हैं। इनके संयोग से शरीर में हल्कापन, रक्त परिसंचरण एवं पाचन सम्बन्धी विकृतियाँ दूर होती है। • इस मुद्रा का प्रभाव मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र पर पड़ता है। इससे यह मुद्रा बौद्धिक, मानसिक, आध्यात्मिक एवं शारीरिक विकास में सहायक बनती है। • इस मुद्रा की साधना से गोनाड्स, एड्रिनल एवं पिच्युटरी ग्रंथियों पर असर होता है जो कि समस्त आन्तरिक संचार तंत्रों को मजबूत बनाता है। इससे निर्णय शक्ति का विकास होता है तथा व्यक्ति साहसी, आशावादी एवं स्थिर स्वभावी बनता है। 15. वज्र मुरजे मुद्रा ___यह तान्त्रिक परम्परा की मुद्रा बौद्ध अनुयायियों द्वारा धारण की जाती है। इस मुद्रा का प्रयोग करते हुए 16 देवियों में से किसी एक देवी के सामने अष्टमंगल के साथ सोलह आंतरिक द्रव्य समर्पित किये जाते हैं, किन्तु विशिष्ट भाव देवी तारा को प्रसन्न करने का रहता है। पूजा मन्त्र यह है- 'ओम् अह् वज्र मुरजे हुम्।' दोनों हाथों में समान मुद्रा की जाती है। विधि हथेलियाँ बाहर की तरफ, तर्जनी, मध्यमा और कनिष्ठिका नीचे की तरफ फैली हुई, अनामिका हथेली में मुड़ी हुई, अंगूठे का प्रथम पोर अनामिका के प्रथम पोर को स्पर्श करता हआ रहे। फिर दोनों हाथों को निकट करने पर वज्र मुरजे मुद्रा बनती है।16 सुपरिणाम • यह मुद्रा शरीरगत अग्नि तत्त्व को प्रभावित करती है। इसकी साधना से शरीर हल्का एवं सक्रिय रहता है। • मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास में सहयोगी बनती है। मधुमेह, कब्ज एवं
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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