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________________ अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य......117 विधि दायी हथेली को नीचे की तरफ रखें, तर्जनी को मध्य भाग की ओर फैलायें तथा शेष अंगुलियों एवं अंगूठे को हथेली की तरफ मोड़ें। बायीं हथेली को मध्य भाग में रखते हुए अंगुलियों एवं अंगूठे को ऊपर की तरफ फैलाएँ। फिर दायीं तर्जनी का बायीं हथेली से स्पर्श करने पर वज्रदर्श मुद्रा बनती है। सुपरिणाम • यह मुद्रा वायु एवं चेतन तत्त्व को सक्रिय करती है। इससे प्राण वायु स्थिर होती है। यह फेफड़ें, हृदय और गुर्दे सम्बन्धी रोगों का शमन कर चैतसिक अनुभूतियों को मजबूत करती है। • यह मुद्रा अनाहत एवं सहस्रार चक्र को प्रभावित करती है। इससे वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रिय निग्रह आदि का विकास होता है तथा संकल्प-विकल्प, संशय-विपर्यय आदि का उपशमन होता है। • यह मुद्रा थायमस और पिनियल ग्रंथि को प्रभावित करते हुए कामेच्छाओं पर नियन्त्रण, निर्णयात्मक शक्ति का विकास, आन्तरिक तंत्रिकाओं के संचालन आदि करने में सहायता प्रदान करती है। 8. वज्र धर्मे मुद्रा यह मुद्रा बौद्ध परम्परा में धारण की जाती अष्ट मंगल के चिह्नों में से एक है और सोलह आंतिरक द्रव्य अर्पण करने की सूचक है। ये सोलह द्रव्य विषय सुख देने वाली 16 देवियों से सम्बन्धित हैं उनमें भी मुख्य वज्रायना देवी तारा की पूजा से सम्बन्धित है। यह संयुक्त मुद्रा छाती के स्तर पर की जाती है। इसमें दोनों हाथों में प्रतिबिंब की भाँति मुद्रा बनती है। इसका मंत्र है- 'ओम् अह् वज्र धर्मे हम्।' विधि हथेलियाँ मध्य भाग में हल्की सी नीचे की तरफ, तर्जनी हल्की सी ऊर्ध्व प्रसरित, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका हथेली की तरफ मुड़ी हुई, अंगूठे का अग्रभाग मध्यमा के अग्रभाग से स्पर्श करता हुआ, तर्जनी के प्रथम पोर परस्पर स्पर्श करते हुए तथा शेष अंगुलियों के द्वितीय पोर एक साथ रहने पर वज्रधर्म मुद्रा बनती है।
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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