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________________ 106... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि दाएँ हाथ से बाएँ हाथ को हल्का सा नीचे की तरफ किन्तु एक-दूसरे के अभिमुख रखें, तत्पश्चात तर्जनी और मध्यमा को फैलायें, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली की तरफ मोड़ें तथा अंगूठे को अनामिका और कनिष्ठिका के बाह्य पोरों पर स्पर्शित करते हुए रखने से खड्गरत्न मुद्रा बनती है। 1 - खड्ग रत्न मुद्रा सुपरिणाम __• यह मुद्रा आकाश एवं वायुतत्त्व को संतुलित करती है जिससे कण्ठ एवं हृदय सम्बन्धी किसी भी प्रकार की समस्या का निवारण हो सकता है। यह चित्त को शान्त कर चरित्र को उदात्त बनाती है। • इसके द्वारा अनाहत एवं विशुद्धि चक्र जागृत होते हैं जिससे वाकशक्ति, कवित्व शक्ति, आरोग्य आदि में वृद्धि होती है। . आनंद केन्द्र एवं विशुद्धि केन्द्र के द्वारा थायमस, थायरॉइड आदि ग्रन्थियों को प्रभावित करते हए भावों को निर्मल, एवं परिष्कृत करती है। इस अध्याय में वर्णित सप्तरत्न की मुद्राएँ मुख्य रूप से भगवान बुद्ध के बोधि प्राप्ति से पूर्व की अवस्था का वर्णन करती है। वर्तमान में इनका सम्बन्ध वज्रायना देवी तारा की उपासना से माना जाता है। साधना के क्षेत्र में यह रत्न
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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