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________________ 48... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि दोनों हथेलियों को मध्य भाग में रखते हुए अंगुलियों और अंगूठों को नीचे की तरफ फैलायें, हाथों को उरू मूल के स्तर पर धारण करें तथा दायाँ हाथ बायें को cross करता हुआ रहे, इस तरह पैंग् तवैनेत्र मुद्रा बनती है। 10 सुपरिणाम • इस मुद्रा की साधना पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व में संतुलन स्थापित करती है। इससे शरीर - नाड़ी शुद्धि, कब्ज एवं पेट सम्बन्धी गड़बड़ियों पर नियंत्रण, हार्ट अटैक, लकवा, मूर्च्छा आदि में लाभ होता है। • यह मुद्रा मूलाधार एवं आज्ञा चक्र को प्रभावित करती है इससे शारीरिक आरोग्य, मानसिक शांति, कार्य दक्षता एवं सूक्ष्म बुद्धि प्राप्त होती है तथा स्वभाव शांत एवं मधुर बनता है। • इसकी साधना से गोनाड्स ' यौन ग्रन्थियाँ' एवं पिच्युटरी पर प्रभाव पड़ता है। यह हस्तदोष, स्वप्नदोष, मासिक धर्म सम्बन्धी समस्याओं का समाधान तथा हीन वृत्ति, भाव शून्यता, स्वच्छंदता आदि को नियंत्रित करती है। • एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार वंध्यत्व निवारण, शरीर में गर्मी का संतुलन एवं प्रजनन को सुगम बनाती है। 8. पेंग्-छोंग् क्रोम्-केडव् मुद्रा ( रत्नमय मार्ग की मुद्रा) थायलैण्ड में इस मुद्रा को पेंग्-छोंग् तथा भारत में हस्तस्वस्तिक मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा थाई बौद्ध परंपरा द्वारा मान्य भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित 40 मुद्राओं एवं आसनों में से आठवीं मुद्रा है। अनुमानत: जब भगवान बुद्ध एक गाँव से दूसरे गाँव की ओर प्रयाण करते थे, उस समय सम्पूर्ण मार्ग रत्न की भाँति प्रकाशित हो उठता था अतः इसे रत्नमय मार्ग की सूचक मुद्रा कहा गया है। यह संयुक्त मुद्रा है। विधि दोनों हथेलियाँ नीचे की तरफ, अंगुलियाँ और अंगूठे बाहर की तरफ फैले हुए तथा दायां हाथ बायें हाथ की कलाई पर Cross करता हुआ रहे, इस भाँति पेंग्-छोंग् क्रोम् केडव् मुद्रा बनती है । 11 • यह मुद्रा जंघा के आगे धारण की जाती है। • मुद्रा धारण किया हुआ व्यक्ति दाहिने पैर पर खड़ा हुआ और बायां पैर उठा हुआ जैसे चल रहा हो, ऐसा प्रतीत होता है ।
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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