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________________ 44... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन अत: यह तृण आदान की सूचक मुद्रा है। यह संयुक्त मुद्रा थाई बौद्ध परम्परा में अधिक प्रचलित है। भगवान बुद्ध इस मुद्रा को खड़े-खड़े करते थे। विधि दायाँ हाथ फैलाया हुआ, हथेली ऊर्ध्वाभिमुख, अंगुलियाँ और अंगूठा बाहर की तरफ फैले हुए कमर के स्तर पर रखें। बायाँ हाथ नीचे की तरफ लटकता हुआ पार्श्वभाग में रहे। इस तरह पैंग् सुंग् रब्यक् मुद्रा बनती है। पेंग्-सुंग रख्यक मुद्रा सुपरिणाम • यह मुद्रा शरीरगत अग्नि एवं जल तत्त्व को प्रभावित करती है। इनके संयोग से पित्त से उभरने वाली बीमारियाँ, मूत्रदोष,गुर्दे आदि से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान होता है। शारीरिक कान्ति एवं तेज बढ़ता है। • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा तनाव पर नियंत्रण कर विशेष कार्य शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करती है। नाभि के नीचे के अवयवों का नियमन करती है तथा इससे वचनसिद्धि होती है। • तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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