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________________ 42... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम • यह मुद्रा शरीरगत आकाश तत्त्व को प्रभावित करती है। इसके संतुलन से शरीर में रहे विषद्रव्यों का परिहार होता है, शरीर तंदुरूस्त एवं मजबूत बनता है तथा काम क्रोधादि कषाय दूर होते हैं। • इस मुद्रा का प्रभाव आज्ञा चक्र एवं ललाट चक्र पर पड़ता है। यह शारीरिक विकास के साथ मस्तिष्क और स्मरण शक्ति का संतुलन करती है और आंतरिक अनुभूतियों में वृद्धि करती है। . दर्शन एवं ज्योति केन्द्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा कषायों पर नियंत्रण करती है। इसके जागरण से व्यक्ति बुद्धिशाली, प्रसिद्ध लेखक, कवि, वैज्ञानिक, तत्त्वज्ञानी और मानव जाति का प्रेमी बनता है। • एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार यह मुद्रा मनोबल, निर्णायक शक्ति, स्मरण शक्ति एवं देखने-सुनने की शक्ति का नियमन करती है। इसका प्रभाव पिच्युटरी एवं पिनियल ग्रंथि से सम्बन्धित कार्यों पर पड़ता है तथा अन्य ग्रन्थियों के संचालन में भी सहायक बनती है। 3. पेंग् लोय तर्ड मुद्रा (भिक्षा पात्र को अधर धारण करने की मुद्रा) यह मुद्रा थायलैण्ड में पेंग लोय् और भारत में अंचित कट्यवलंबित नाम से प्रचलित है। भगवान बुद्ध की 40 मुद्राओं में से यह तीसरी मुद्रा है। भगवान बुद्ध भिक्षा काल में आहार पात्र को बिना किसी अवलंबन के धारण करते थे, यह उसकी प्रतीक मुद्रा है। बौद्ध परम्परा में यह मुद्रा आज भी धारण की जाती है। विधि किसी प्लेट या पात्र को पकड़ते समय हाथों की जो स्थिति बनती है इस मुद्रा में वैसा ही किया जाता है। दायीं हथेली ऊपर की तरफ, अंगुलियाँ किंचित झुकी हुई, अंगूठा हल्का सा अंगुलियों के अग्रभाग की तरफ झुका हुआ रहें। बायां हाथ जंघा पर, अंगुलियाँ आगे की ओर तथा अंगूठा पीछे की तरफ अथवा अंगुलियों के पार्श्व में रखने पर पेंग् लोय् तार्ड मुद्रा बनती है।। सुपरिणाम • इस मुद्रा का प्रयोग अग्नि तत्त्व को प्रभावित करता है। यह आहार का पाचन कर शरीर को शक्ति प्रदान करती है, स्नायुओं की स्थिति स्थापकता बनाए रखती है एवं चेहरे को सुंदरता प्रदान करती है। एनीमिया, पीलिया,
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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