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________________ भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की......35 बौद्ध पिटकों के अनुसार बुद्ध ने इस मुद्रा को कई बार प्रयुक्त किया था। यह बुद्ध की 40 मुद्राओं में से एक है। यह संयुक्त मुद्रा सामान्यतः हिन्दू और बौद्ध दोनों परम्पराओं में देवी-देवता, बोधिसत्त्व, अर्हत भक्त आदि के द्वारा धारण की जाती है। चित्र के अनुसार यह ध्यान की एक अवस्था या एकाग्रता की सूचक है। विधि दोनों हथेलियों को शिथिल रूप में ऊपर की ओर अभिमुख करते हुए दायें हाथ को बायें हाथ पर रखने से ध्यान मुद्रा बनती है। इसमें दोनों हाथ गोद में रहते हैं। यह मुद्रा एक हाथ से भी की जा सकती है, उस समय अधिकतर बायां हाथ अंक में रहता है। सुपरिणाम • यह मुद्रा करने से अग्नि एवं वायु तत्त्व संतुलित हो जाते हैं। इनका संयोग होने से वायु सम्बन्धी विकृतियाँ, सिरदर्द, अनिद्रा आदि रोग उपशान्त होते हैं। • मणिपुर एवं अनाहत चक्र को प्रभावित करते हुए यह मनोबल एवं आत्मबल का वर्धन करती है। इसी के साथ यह वाक् शक्ति एवं कवित्व शक्ति का विकास करती हैं। • यह मुद्रा करने से थायमस, एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज़ का स्राव संतुलित रहता है जिससे विचारधारा निर्मल एवं एकाग्र बनती है। 3. भूमिस्पर्श मुद्रा इस मुद्रा में एक हाथ भूमि को स्पर्श करता हुआ रहने से यह भूमिस्पर्श मुद्रा कही जाती है। भारत में इस मुद्रा को भास्पर्श, भूमिस्पर्श, भूस्पर्श, माखीजया मुद्रा भी कहा जाता है। चीन में यह मुद्रा अन-शन-यिन और चु-टि-यिन, इग्लैण्ड में एडेमेटाइन, जापान में अंजाम इन, सौकुची इन, मानवी छाई, पेंग मानवी छाई और सडंग मेन के नाम से जानी जाती है। ___ भगवान बुद्ध ने भूमि को साक्षी रूप में रखते हुए पापों को एवं बुराईयों को हटाने के लिए यह मुद्रा धारण की थी। इस मुद्रा सम्बन्धी प्राचीनतम अनेक चित्र प्राप्त होते हैं उससे सूचित होता है कि भगवान बुद्ध की यह प्रिय मुद्रा थी। ___भगवान बुद्ध द्वारा धारण की जाती 40 मुद्राओं में से यह पांचवी मुद्रा है। मुद्रा चित्र को गहराई से देखने पर ज्ञात होता है कि जब बुद्ध ध्यान अवस्था में
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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