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________________ 324... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 29. एक दूसरे से गुथी हुई अंगुलियों में कनिष्ठिका और अनामिका में मध्यमा और तर्जनी के फैलाने से और तर्जनी द्वारा वामहस्त तल चालन से त्रासनी (डरावनी) मुद्रा ‘पूज्य मुद्रा' होती है। 30. अंगूठे और तर्जनी को मिलाकर शेष अंगुलियों को फैलाने से 'पाश मुद्रा' होती है। 31. अपने हाथ की ऊपरी अंगुली को बाएं हाथ के मूल में तथा उसी अंगूठे को तिरछाकर तर्जनी चलाने से 'ध्वज मुद्रा' होती है। 32. दाहिने हाथ को सीधा तानकर अंगुलियों को नीचे की ओर फैलाने से 'वर मुद्रा' होती है। 33. बाएं हाथ से मुट्ठी बांधकर कनिष्ठिका को फैलाकर शेष अंगुलियों को अंगूठे से दबाने से 'शंख मुद्रा' होती है। 34. एक दूसरे की ओर किए गये हाथों से वेणीबंध करके मध्यमा अंगुलियों को फैलाकर एवं मिलाकर शेष अंगुलियों से मुट्ठी बांधने पर 'शक्ति मुद्रा' होती है। 35. दोनों हाथ की तर्जनी और अंगूठे से घुमाव (कड़ी) बनाकर परस्पर एक दूसरे के अन्दर प्रवेश कराने से 'श्रृंखला मुद्रा' होती है। 36. सिर के ऊपर दोनों हाथों से शिखराकार कली बनाई जाती है उसी को 'मन्दरमेरु मुद्रा' (पंचमेरु मुद्रा ) कहते हैं । 37. बाएं हाथ की मुट्ठी के ऊपर दाहिने हाथ की मुट्ठी रखकर शरीर के साथ कुछ ऊपर उठाने से 'गदा मुद्रा' होती है। 38. बाएं हाथ की अंगुलियों को नीचे की ओर घंटाकार फैलाकर दाहिने हाथ से मुट्ठी बांधकर, तर्जनी को ऊपर करके बाएं हाथ के नीचे लगाकर घंटे (को बजाने के) के समान चलाने से 'घण्टा मुद्रा' होती है। 39. ऊपर उठे हुए पृष्ठ भाग वाले हाथों को जोड़कर दोनों कनिष्ठिकाओं को बाहर करके जोड़ने से 'परशु मुद्रा' होती हैं। 40. हाथों को उठाकर उसकी अंगुलियों को कमल के समान फैलाने से ‘वृक्षमुद्रा' होती है। 41. दाहिने हाथ की मिली हुई अंगुलियों को ऊपर उठाकर सर्प फण समान कुछ मोड़ने से 'सर्प मुद्रा' होती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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