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________________ 300... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा यह मुद्रा अग्नि जैसे प्रमुख भयों को टालने के लिए और वर्षाकाल में ध्यान के अवसर पर की जाती है। इस मुद्रा का बीज 'उ' है। 62. त्रासनी मुद्रा इस मुद्रा का परिचय विधिमार्गप्रपा में वर्णित मुद्रा नं. 20 के समान जानना चाहिए। यह त्रासनी मुद्रा दुष्ट शक्तियों का निवारण करने एवं दुर्विनीत शिष्यों को अनुशासन में रखने के प्रयोजन से प्रयुक्त होती है। इसका बीज मन्त्र 'ऊ' है। 63. गोवृषण मुद्रा ___ इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में कथित मुद्रा नं. 19 के समान जानना चाहिए। यदि चतुर्विध संघ के साथ विहार करना हो तब इस मुद्रा का प्रयोग करने के पश्चात यात्रा शुरू करनी चाहिए। इस मुद्रा प्रभाव से समस्त प्रकार का मंगल होता है। इसका बीज मन्त्र 'ऋ' है। 64. पाश मुद्रा इस मुद्रा का परिचय विधिमार्गप्रपा में सन्दिष्ट मुद्रा नं. 21 के समान है। पाश मुद्रा दुष्टों का निग्रह करने के लिए करते हैं। इसका बीज मन्त्र 'ऋ' है। 65. महा मुद्रा इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्रा नं. 9 के सदृश है। यह मुद्रा संघपति प्रमुखों की स्थापना और सृष्टि को अपने अनुकूल करने के निमित्त की जानी चाहिए। इसका बीज मन्त्र 'लु' है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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