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________________ 274... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा यह मुद्रा अपने गुण के अभिवृद्धि की सूचक है। पद्मकोश मुद्रा दिखाकर नंद्यावर्त्त स्थापना एवं प्रतिष्ठा सम्बन्धी मंगल अनुष्ठान सम्पन्न किये जाते हैं। इसका बीज मन्त्र 'ञ' है। विधि अनुसार धान्य, कोश, सौभाग्य और आनन्द "कोशाकारौ करौ कृत्वाऽनामिकाद्वयस्यांगुष्ठलगनं कनिष्ठिकाद्वयस्य मध्ये प्रतिमाकारं कृत्वा पद्मकोशमुद्रा । " दोनों हाथों को कोशाकार में निर्मित कर दोनों अनामिकाओं को अंगूठों से संस्पर्शित करें। पश्चात दोनों कनिष्ठिकाओं के मध्य भाग को प्रतिमा आकार में करने पर पद्मकोश मुद्रा बनती है। सुपरिणाम पद्मकोश मुद्रा मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करती है। इससे बलिष्ठता, स्फूर्ति, संकल्पबल, पराक्रम एवं आत्मविश्वास बढ़ता है। दैहिक स्तर पर यह मुद्रा हर्निया, दाद-खाज, नपुंसकता, कामुकता, मासिक धर्म सम्बन्धी समस्या, पाचन समस्या, अल्सर, त्वचा रोग, दाग आदि के निवारण में लाभ करती है । • • अग्नि एवं जल तत्त्व को नियंत्रित करते हुए यह मुद्रा उत्सर्जनं विसर्जन में सहायक बनती है। मनोविकारों को घटाती है और अध्यात्म में रुचि विकसित करती है। 29. सामान्य पद्म मुद्रा जिस मुद्रा से सामान्य कमल की आकृति दर्शायी जाती हो, उसे सामान्य पद्ममुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा सर्वत्र मंत्र विधान और पूजा विधान के अवसर पर की जाती है। इसका बीज मन्त्र 'ट' है। विधि " दक्षिणकर एक एव प्रसारितांगुलीकः सामान्य पद्म मुद्रा । " दाहिने हाथ की अंगुलियों को प्रसारित करने पर सामान्य पद्म मुद्रा बनती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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