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________________ 260... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा विधि "कोशाकारौ करौ कृत्वा अंगुष्ठद्वयग्रथने मध्ये शुषिरे कपाट मुद्रा।" दोनों हाथों को कोशाकार रूप में बनाते हुए अंगूठों को परस्पर ग्रथित करने एवं हथेलियों के मध्य भाग को छिद्र युक्त रखने पर कपाट मुद्रा बनती है। सुपरिणाम • कपाट मुद्रा को धारण करने से अनाहत, विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र जागृत होते हैं। यह मुद्रा अध्यात्म एवं अनुशासन में वृद्धि करते हुए भय, निराशा, ईर्ष्या, निष्क्रियता, आत्महीनता आदि दुर्गुणों को नष्ट करती है। इससे अतीन्द्रिय ज्ञान एवं क्षमता का जागरण होता है। • भौतिक स्तर पर यह मुद्रा मुँह, गला, नाक, कान आदि की समस्याओं एवं श्वास, हृदय, छाती, फेफड़ा, मस्तिष्क आदि की समस्याओं का निवारण करती है। • यह मुद्रा वायु एवं आकाश तत्व में संतुलन स्थापित करते हुए कलात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों में रुचि का वर्धन करती है तथा सद्विचार एवं सद्भावों का विकास करती है। • पीयूष एवं पिनियल ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास में सहायक बनती है। यह चित्त और दिमाग को शांत, स्थिर एवं एकाग्र बनाती है। 19. तोरण मुद्रा घर का मुख्य द्वार तोरण द्वार कहलाता है। इसे सिंह द्वार भी कहते हैं। यह प्रवेश द्वार, बहिर भी कहलाता है। बृहद् हिन्दी कोश एवं हिन्दी शब्द सागर के अनुसार किसी घर या नगर का बाहरी फाटक तोरण कहलाता है। एक अन्य अर्थ के अनुसार वह द्वार जिसका ऊपरी भाग मंडपाकार तथा मालाओं और पताकाओं आदि से सजाया गया हो, तोरण कहलाता है एवं दूसरे अर्थ के अनुसार दीवारों, खंभों आदि की सजावट के लिए लगायी जाने वाली मालाएँ तोरण कहलाती हैं। यहाँ तोरण शब्द का अभिप्राय गृह प्रवेश द्वार और नगर प्रवेश द्वार से है। यह मुद्रा नये शहर में, मकान प्रवेश पर और शकुन देखने के अवसर पर की जाती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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