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________________ 240... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा • पृथ्वी, अग्नि एवं आकाश तत्त्व का संतुलन करते हुए यह मुद्रा जागृत ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन करती है, परमानंद की प्राप्ति करवाती है तथा विचारों में उत्साह एवं स्फूर्ति लाती है। • प्रजनन, एड्रीनल, पीयूष आदि ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा योनि विकारों को दूर करने, कामेच्छा को नियंत्रित करने तथा बालों एवं हड्डियों की समस्या को दूर करने में विशेष उपयोगी है। 4. मकार मुद्रा मकार शब्द अव्ययवाची भी है और संज्ञावाची भी। इन दोनों रूपों में 'म' का प्रयोग होता है। यदि अव्यय रूप में प्रयुक्त करते हैं तो यह निषेध अर्थ का वाचक होता है और संज्ञा रूप में प्रयुक्त करते हैं तो इसके कई अर्थ होते हैं जैसे शिव, चन्द्रमा, सौभाग्य, प्रसन्नता, कल्याण आदि। यहाँ संभवत: मकार मुद्रा का तात्पर्य सौभाग्य, कल्याण आदि अर्थों से है क्योंकि यह मुद्रा जिनवाणी (प्रवचन) की महिमा को बढ़ाने के निमित्त करते हैं। मकार मुद्रा
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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