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________________ 238... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा बाँयें अंगूठे के अग्रभाग को दायें अंगूठे के पृष्ठ भाग से योजित करें। फिर बायीं तर्जनी के अग्रभाग को दायें अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्शित करें। फिर बायीं मध्यमा को दायीं तर्जनी से संयुक्त करें। बायीं अनामिका को दायीं मध्यमा से संस्पर्शित करें। फिर बायीं कनिष्ठिका को बिन्दुवत करने से ह्रीं कार मुद्रा बनती है। सुपरिणाम • अनुभवी योगी साधकों के अनुसार ह्रीं कार मुद्रा का प्रयोग करने से मणिपुर एवं ब्रह्म केन्द्र प्रभावित होते हैं। यह आत्मविश्वास, मनोबल, सजीवता और सहनियंत्रण को जागृत करती है। इससे आध्यात्मिक क्षेत्र में रुचि बढ़ती है। • शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा कैन्सर, पुरानी बीमारी, गर्भाशय, पित्ताशय आदि समस्याओं का निवारण करती है। • अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा आन्तरिक अग्नियों को प्रदीप्त करती है। ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण करती है तथा आन्तरिक आनंद की अनुभूति करवाती है। • एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शौर्य, पराक्रम, आत्मविश्वास आदि गुणों का वर्धन करती है। 3. नकार मुद्रा नकार शब्द विविध अर्थों का वाचक है। 'न' का एक अर्थ धन-सम्पत्ति है। यहाँ नकार का अभिप्राय धन-संपदा हो सकता है क्योंकि यह मुद्रा मृतक निमित्त पूजा सामग्री चढ़ाने के पश्चात की जाती है। उस पूजा सामग्री का अन्तर्भाव धन-संपदा में होता है। इस तरह नकार की मुद्रा मृतात्मा की शान्ति निमित्त और मंत्र साधना के प्रसंग में की जाती है। मन्त्र साधना के दरम्यान साधक, साध्य के अनुरूप बनने का प्रयास करता है अथवा स्वयं को साध्य से अविभक्त समझता है, तभी मंत्र सिद्ध होता है। अत: यह मुद्रा इष्ट देवी-देवता को प्रसन्न करने एवं साध्य गुणों को प्राप्त करने के उद्देश्य से भी की जाती है। नकार मुद्रा का बीज मन्त्र 'न' है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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