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________________ आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...227 21. ज्ञान कल्पलता मुद्रा प्रस्तुत मुद्रा में 'ज्ञान' शब्द केवलज्ञान का सूचक है एवं 'कल्पलता' शब्द कल्पवृक्ष का बोधक है। जिस तरह सामान्य कल्पवृक्ष भौतिक जगत की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करता है उसी तरह केवलज्ञान रूपी कल्पवृक्ष अध्यात्म जगत की सकल ऋद्धि-समृद्धियों को प्रदान करता है। इस मुद्रा के माध्यम से अनन्त गुणपुंज केवलज्ञान की स्थिति को प्रकट करने का प्रयत्न किया जाता है। विधि ___ "नासाने दक्षिणाङ्गुष्ठ तर्जन्योः स्थापनं नाभौ वा भाले वा भ्रूमध्ये वा ज्ञानकल्पलतामुद्रा" नासिका के आगे, नाभि पर, मस्तक पर अथवा भौंहों पर दाहिने हाथ का अंगूठा एवं तर्जनी को स्थापित करने से जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे ज्ञान कल्पलता मुद्रा कहते हैं। - - वान कल्पलता मुद्रा
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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