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________________ आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...211 प्रतिमा के ठीक नीचे स्वर्ण या रजत निर्मित कछुएं की आकृति रखी जाती है। इस तरह कच्छप अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इस मुद्रा में कछुएं जैसी आकृति बनाई जाती है इसलिए इसका नाम कच्छप मुद्रा है। ___आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार यह मुद्रा दुष्ट शक्तियों अथवा मनोदैहिक वृत्तियों का निरोध करने हेतु की जाती है। विधि ____ “स्वेच्छासुखासनासीनस्य वामहस्ते प्रसारिते उत्सङ्गधृते तदुपरि दक्षिणहस्ते कच्छपाकार धृते कच्छप मुद्रा।" स्वेच्छापूर्वक सुखासन में बैठकर एवं पालथी के बीच बाएँ हाथ को फैलाकर उसके ऊपर दायां हाथ रखने से जो कच्छपाकार आकृति निष्पन्न होती है, उसे कच्छप मुद्रा कहते हैं। सुपरिणाम • शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा नीचे के अंगों को अधिक प्रभावित करती है। इससे खून की कमी, सूखी त्वचा, खसरा, हर्निया, मधुमेह, नपुंसकता, कामुकता, योनि विकार, रक्त कैन्सर, पाचन गड़बड़ी आदि में लाभ होता है। यह नशा मुक्ति में विशेष सहायक हो सकती है। इस मुद्रा से अग्नि और जल तत्त्व संतुलित रहते हैं। यह पाचन, प्रजनन एवं रक्त विकार का शमन करती है। • आध्यात्मिक दृष्टि से आत्मिक आनन्द की अनुभूति होती है। साधक में अद्भुत सामर्थ्य प्रकट होता है। व्यक्ति के विचारों में स्थिरता-एकाकारता का गुण पनपता है। ___ इससे मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र सक्रिय होते है। इन चक्रों के जागरण से संकल्प बल एवं पराक्रम बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का ऊर्वीकरण होता है। मनोविकारों का शमन तथा परमार्थ, परोपकार एवं प्रेम में उत्कर्ष होता है। एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करती है तथा कामेच्छाओं को नियंत्रित करने में सहायक बनती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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