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________________ आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...199 विधि "सुखासनस्थस्य वरदाकारौ हस्तौ वीरमुद्रा।" सुखासन में बैठकर दोनों हाथों को आशीर्वाद की मुद्रा में रखना वीर मुद्रा हैं। सुपरिणाम • शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा का प्रयोग कैन्सर, कोष्ठबद्धता, मधुमेह, पाचन समस्या, अल्सर, शारीरिक कमजोरी, बुखार, आँखों की समस्या में लाभकारी है। यह मुद्रा मेरुदण्ड को प्रभावित कर स्वस्थता प्रदान करता है। गैस सम्बन्धी तकलीफों में शीघ्र लाभ देती है। ___ यह मुद्रा अग्नि, पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व को संतुलित रखती है। पाचन, विसर्जन, श्वसन आदि की क्रियाओं का नियमन करती है। मेरुदण्ड, गुर्दे , पैर, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, नाक, कान, मुँह, गले आदि की समस्या का शमन करते हुए ऊर्जा को ऊर्ध्वारोहित करती है। • आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा उच्च भावनाओं का सर्जन करती है। इसके अभ्यास से साहस, धैर्य और शक्ति का अविर्भाव होकर अनिद्रा एवं अति निद्रा जैसे रोगों से मुक्ति मिलती है। • इससे मूलाधार एवं आज्ञा चक्र जागृत होते हैं। यह मुद्रा ज्ञान, ऊर्जा एवं संकल्प शक्ति को प्रकट करती है। मनोविकारों को घटाती है एवं परमार्थ में रुचि को बढ़ाती है। मनुष्य की विलक्षण क्षमता विकसित होती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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