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________________ 190... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा सारांश रूप में कहें तो यह व्यक्तिगत चेतना का मुख्य केन्द्र है, मूल रूप का सूचक है, बीज का समवाचक है। यह ब्रह्माण्डीय बीज है, जिससे सभी जीव प्रकट एवं विकसित होते हैं। यह असीम शक्तियों का अति सूक्ष्म स्वरूप है। बिन्दु मुद्रा व्यक्ति को प्रवृत्ति मार्ग से निवृत्ति मार्ग की ओर प्रेरित करती है। इस मुद्रा के माध्यम से साधक निराकार स्वरूपी चेतन सत्ता का अनुभव करता हुआ तद्रूपमय हो जाता है । विधि “अनामिकयांगुष्ठाग्रस्पर्शनं बिन्दु मुद्रा । " अनामिका अंगुली से अंगूठे के अग्रभाग का स्पर्श करना बिन्दु मुद्रा है । सुपरिणाम • शारीरिक स्तर पर इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से हृदय और शरीर की कमजोरी दूर होती है तथा पूरे शरीर में एक नवीन चेतना का अविर्भाव होता है। इस मुद्रा से हृदय की रक्त संचार क्षमता में लाभ होता है । गुर्दे और मूत्रावरोध सम्बन्धी दोष दूर होते हैं। इससे पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व की कमी से होने वाली बीमारियों का शमन होता है। • मानसिक स्तर पर मन स्फटिक के समान स्वच्छ, एकाग्र और ग्रहणशील हो जाता है। • आध्यात्मिक स्तर पर इस मुद्रा से चेतना शक्ति का उद्भव होता है । भावनात्मक स्तर पर आत्मा में प्रसन्नता बनी रहती है। यह मुद्रा मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को अधिक प्रभावी बनाती है जिसके फलस्वरूप अपूर्व शक्तियों का प्रादुर्भाव होता है । विशेष एक्यूप्रेशर सिद्धान्त के अनुसार इस मुद्रा का दबाव जिस बिन्दु पर पड़ता है, उससे ऊर्जा ऊर्ध्वगामी बनती है। ● इससे अवांछित कार्य करना, बेहोशी के दौरे पड़ना, मिरगी, कान आवाजें आना, खड़े होने में असन्तुलन आकर डगमगाना, नसों में तनाव, बवासीर, सिरदर्द, भूलने की आदत, जीभ में स्वाद न आना, निम्न रक्तचाप आदि रोगों का उपशमन होता है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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