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________________ 180... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा योग मुद्रा अध्यात्म दृष्टि से योग व्यक्ति के चेतन, अवचेतन एवं अचेतन स्तरों पर नियंत्रण रखता है। इसे व्यक्तित्व विकास का विज्ञान कह सकते हैं, व्यक्तित्व के गहन पक्षों को आवृत्त करने का विज्ञान कह सकते हैं, सम्पूर्ण जीवन का, चेतना का विज्ञान कह सकते हैं। मूलतः योग का सम्बन्ध शरीर, मन और चेतना जैसे जीवन के अति गहन एवं सारभूत तत्त्वों से है। योग मुद्रा में प्रयुक्त योग शब्द आत्मा से परमात्मा का योग करवाता है। यह मुद्रा ध्याता, ध्यान और ध्येय की सकारात्मकता स्थापित करने में सहयोगी बनती है। यह भक्त को आराध्य से जोड़ने का कार्य करती है। इस मुद्रा के माध्यम से भक्त का भावात्मक योग अपने आराध्य से किया जाता है। जैन परम्परा में इस मुद्रा का अत्यधिक महत्त्व है। तीर्थंकर परमात्मा को वंदन करते समय नमुत्थुणं सूत्र योग मुद्रा में ही बोला जाता है। जैन गृहस्थ के लिए अहोरात्रि में 12 अथवा 17 बार और जैन मुनि के लिए 13 अथवा 18 बार नमुत्थुणं सूत्र बोलने का उल्लेख है। इस तरह योग मुद्रा का पुन: पुन: उपयोग किया जाता है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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