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________________ 154... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 58. प्रणिपात मुद्रा प्रणिपात संस्कृत व्याकरण का परिष्कृत रूप है । प्रणिपात का सामान्य अर्थ होता है झुकना । संस्कृत कोश में इसी अर्थ से सम्बन्धित अन्य पर्यायवाची भी कहे गये हैं जैसे- पैरों में गिरना, साष्टांग प्रणाम करना, अभिवादन करना, नमस्कार करना आदि। प्रस्तुत मुद्रा में शरीर के पाँचों अंग झुकाये जाते हैं अतः इसका दूसरा नाम पंचांग प्रणिपात है। गुजराती में कहावत है " जे नमे ते सहु ने गमे" अर्थात जो व्यक्ति झुकता है वह सब को प्रिय लगता है । यहाँ प्रिय से तात्पर्य कृपा से है। इससे सद्गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। एक जगह कहा गया है कि “नम्रता से मनुष्य तो क्या देवताओं को भी वश में किया जा सकता है।" शरीर से एवं मन से झुके रहने में बहुत फायदे हैं। झुकने वाला हर तरह की बाधाओं से पार हो जाता है और पूज्यों के अन्तः आशीष से हर कामनाएँ सहज पूर्ण होती हैं। वस्तुतः प्रणिपात मुद्रा विनय आदि गुणों का सर्जन, अहंकार आदि दुर्गुणों का मर्दन एवं सद्गुरुओं का आशीर्वचन प्राप्त करने हेतु की जाती है । प्रणिपात मुद्रा
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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