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________________ 146... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा कमी या अधिकता से होने वाली बीमारियों से छुटकारा पाता है। • आध्यात्मिक स्तर पर मन की चंचल वृत्तियाँ शान्त होती हैं। साधक बाह्य आकर्षणों से ऊपर उठकर विषय-विकारों एवं कामवासनाओं से मुक्त बन जाता है। साधना मार्ग में आने वाले विघ्नों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है। ब्रह्मचर्य शक्ति का विकास होता है। विशेष • एक्यूप्रेशर नियम के अनुसार इस मुद्रा के दाब बिन्दु पित्ताशय की अधिक ऊर्जा को यकृत में प्रवाहित कर लीवर की कमियों को दूर करते हैं। • रक्तजन्य विकारों का निवारण करते हैं। • जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों को ठीक करते हैं। 55. गरुड़ मुद्रा गरुड़ को पक्षियों का राजा कहा गया है। यह सबसे अधिक ताकतवर पक्षी होता है। वैदिक परम्परा गरुड़ को विष्णु का वाहन मानती है जो सम्पूर्ण स्वर्गीय क्षेत्रों में परिवहन करता है। इसे साँपों का नैसर्गिक शत्रु भी माना गया है। कहते हैं कि गरुड़ साँपों को निगल जाता है, सर्प विष को अपने भीतर उंडेल देता है। यही वजह है कि विष संहारक वैद्यों को गारुड़िक कहते हैं। प्रतीकात्मक रूप में इस मुद्रा के प्रयोग से बाह्य या आभ्यन्तर समस्त प्रकार के रोगों का निवारण होता है। गरुड़ मुद्रा श्रेष्ठता एवं उत्कर्षता की प्रतीक भी है, क्योंकि इस मुद्रा के प्रभाव से साधक हर तरह की शुभ क्रियाओं को अच्छी तरह सम्पन्न कर सकता है। इस मुद्रा को दिखाने का एक प्रयोजन यह भी है कि जैसे मच्छर, खटमल बहुत छोटे होते हैं फिर भी परेशान करते रहते हैं उसी तरह अदृश्य जीव-जन्तु अथवा व्यन्तर आदि देव उपद्रव कर सकते हैं। किसी तरह की हानि पहुँचाकर स्वस्थ चित्त को अस्वस्थ कर सकते हैं। गरुड़ मुद्रा दिखाने से उनके दर्विचार रूपी विष समाप्त हो जाते हैं। फलत: अनिष्ट की संभावना टल जाती है। प्रतिष्ठा आदि के अवसर पर मुख्य विधि सम्पन्न करने वाला साधक सर्पादि के बाह्य विष और राग-द्वेषादि के आभ्यन्तर विष से मुक्त रहें, इन उद्देश्यों की परिपूर्ति हेतु गरुड़ मुद्रा की जाती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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