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________________ 134... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा • इस मुद्रा के द्वारा अरिहंत परमात्मा आदि इष्ट तत्त्वों को आमन्त्रित किया जाता है। इसलिए यह आमन्त्रणसूचक मुद्रा है। • इस मुद्रा का प्रयोग आदर-सत्कार के रूप में भी होता है, इस अपेक्षा से यह अभिवादन सूचक है। • इस मुद्रा में शरीर का ऊपरी हिस्सा तथा दोनों हाथ झुके रहते हैं, इसलिए वह विनय और नम्रता का सूचक है। • अंजलि मुद्रा से पूजा आदि सामग्री अर्पित की जाती है। इस कारण अन्य परम्पराएँ इसे आराधना और पूजा की मुद्रा मानती हैं। • इस मुद्रा से वन्दन का भाव जागृत होता है। इस दृष्टि से यह वन्दन सूचक मुद्रा कही गई हैं। ___ इस तरह अंजलि मुद्रा के द्वारा विनय-सत्कार आदि भाव प्रदर्शित करते हुए इष्टदेवों को आमन्त्रित एवं उन्हें सन्तुष्ट किया जाता है। विधि "उत्तानां किंचिदाकुंचितकरशाखौ पाणी विधारयेदिति अंजलि मुद्रा।" प्रसारित की गई एवं कुछ झुकी हुई अंगुलियों से युक्त हाथों को अच्छी तरह धारण करने पर अंजलि मुद्रा बनती है। सुपरिणाम • शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा का प्रयोग जठराग्नि को प्रदीप्त कर उदर सम्बन्धी रोगों में लाभ पहुंचाता है। इस मुद्रा से पृथ्वी तत्त्व सम्बन्धी दोष दूर होते हैं। शारीरिक दुर्बलता दूर होकर व्यक्ति सबल बनता है। यह मुद्रा शक्ति केन्द्र (मूलाधार चक्र) को स्वस्थ बनाती है। इससे पर्याप्त शक्ति संगृहीत होती है और व्यक्ति तंदुरुस्त बनता है। शरीर की कान्ति एवं तेज भी बढ़ता है। • मानसिक स्तर पर बौद्धिक क्षमता और स्मृति का विकास होता है। हृदय विशाल एवं उदार दृष्टिकोणवादी बनता है। • आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा शुभ कार्यों के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना विकसित करती है। साधक को निष्काम कर्म हेतु उत्प्रेरित करती है। इससे कुंडलिनी शक्ति का ऊर्वीकरण होता है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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