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________________ 128... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा जिन आत्माओं ने चार घातिकर्मों (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय) का क्षय कर लिया है और राग-द्वेष की परम्परा का विच्छेद कर केवलज्ञान को उपलब्ध कर लिया है, वे अरिहंत कहलाती हैं। जिन आत्माओं ने चार घातिकर्म और चार अघातिकर्म (वेदनीय, आयुष्य, नाम, गौत्र) रूप अष्टकर्मों का अन्त कर दिया है तथा जन्म-मरण की परम्परा का विच्छेद कर स्वयं को शुद्ध स्वरूप में प्रतिष्ठित कर लिया है वे सिद्ध कहलाती हैं। जो साधक पुरुष, चतुर्विध संघ के नायक हैं, स्वयं पाँच आचार का पालन करते हैं और अन्यों को उत्प्रेरित कर उसका पालन करवाते हैं, वे आचार्य कहलाते हैं। जो सन्त पुरुष अध्ययन-अध्यापन, पठन-पाठन में निरत रहते हैं वे उपाध्याय कहे जाते हैं। जो बाह्य परिग्रह के त्यागी और पाँच महाव्रतों का परिपालन करते हैं वे साधु कहलाते हैं। ___ यह परमेष्ठी मुद्रा, परमेष्ठी पद को प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाती है। विधि ___ "उत्तानहस्तद्वयेन वेणीबन्यं विधायांगुष्ठाभ्यां कनिष्ठिके तर्जनीभ्यां च मध्यमे संगृह्यानामिके समीकुर्यात् इति परमेष्ठीमुद्रा।" परमेष्ठी मुद्रा-1
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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