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________________ 110... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा सर्प मुद्रा सर्प को विषधर माना जाता है लेकिन उसकी खासियत यह है कि वह विष किसी के शरीर में चढ़ जाये तो, उसी के अन्य विष से दूर होता है जैसे चुभे हुए कांटे को कांटे से ही निकालना संभव है। उक्त दृष्टि से कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण पृथ्वी को धारण करने से सर्प मुद्रा असीम शक्ति का प्रतीक है । सकल जीवों को आश्रय देने से असाधारण उपकारक है। चराचर विश्व के लिए एक सदृश व्यवहार करने से एकता और अखंडता का प्रतीक है। सर्प की सबसे विलग विशेषता यह देखी जाती है कि वह टेढ़ा-मेढ़ा चलते हुए भी अपने बिल में सीधा प्रवेश करता है। यह संकेत रूप में प्रेरणा देता है कि मन वक्री स्वभाव वाला है। उसका टेढ़ापन दूर किये बिना आत्म भवन में प्रवेश नहीं हो सकता। आत्मा ऊर्ध्व स्वभावी है, ऊपर की ओर उठना उसका निजी स्वभाव है, अशुभ कर्मों से प्रतिबद्ध होने के कारण ही वक्रगतियों में गमन करती है किन्तु जब सम्पूर्ण कर्म विनष्ट हो जाते हैं तब ऊर्ध्वारोहण करती हुई
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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