SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......101 सिरदर्द, घुटने एवं जोड़ों की समस्या, मधुमेह, बुखार, पाचन समस्या आदि के निवारण में सहायक बनती है। • मानसिक दृष्टि से यह अनियन्त्रित संवेगों को नियन्त्रित करती है। वैचारिक हीनताओं को समाप्त करती है। एकाग्रता के साथ श्रवण शक्ति को बढ़ाती है। • आध्यात्मिक स्तर पर विश्वप्रेम की भावना विकसित करती है। अहंकार जैसे दुर्गुणों का निरसन कर ऋजुभाव उत्पन्न करती है। इससे कई तरह के आत्मलाभ प्राप्त होते हैं। साधक ब्रह्मनाद की अनुभूति कर सकता है। एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा साधक को साहसी, निर्भीक, सहनशील एवं आशावादी बनाती है तथा कामेच्छाओं को नियंत्रित करती है। विशेष • एक्यूप्रेशर मेरीडियनोलोजी एवं यौगिक चक्र के अनुसार घण्टा मुद्रा में मूलाधार एवं मणिपुर चक्र पर दबाव पड़ता है जिसके कारण नाभि से पाँव तक की गर्मी अथवा गर्मी की कमी से उत्पन्न रोग ठीक हो जाते हैं। • इस मुद्रा के दाब बिन्दु आँतों के रोग, सूजन, एलर्जी, एपेन्डिक्स, मत्र रोग, कमजोरी, थकान, डायबिटिज आदि से छुटकारा दिलाते हैं। 33. कमण्डलु मुद्रा इस मुद्रा में कमण्डलु जैसा आकार बनता है इसलिए इसका कमण्डलु मुद्रा है। संस्कृत कोश के अनुसार संन्यासियों के जल रखने के उपकरण विशेष को कमण्डलु कहते हैं जो लकड़ी अथवा मिट्टी से निर्मित होता है। . हिन्दु मन्दिरों में प्रसाद रूप में दिया जाने वाला जल कमण्डल में ही रखा जाता है। भारत में प्राचीन संन्यासी, ऋषि-महर्षि कमण्डलु में जल रखते थे। वैदिक मान्यता है कि देवियों को कमण्डलु में जल रखना प्रिय है। वे जिन पर प्रसन्न होती हैं उन पर कमण्डलु से जल का छिड़काव करती हैं उससे सुखसमृद्धि फैलती है। कहा जाता है कि नारद अपने कमण्डलु में विविध तीर्थों का जल रखते थे। एक बार तुष्टमान होकर कृष्ण के ऊपर उस जल को छिड़का था। इस तरह अनेक ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy