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________________ 74... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा नियंत्रण में रहते हैं। इससे वायु जनित रोगों में फायदे होते हैं। गैस की तकलीफ होने पर वज्रासन में बैठकर यह मुद्रा करने से राहत मिलती है। • मानसिक दृष्टि से मस्तिष्क के ज्ञान तंतु क्रियाशील होते हैं, मन शान्त होता है और स्मरण शक्ति बढ़ती है । • आध्यात्मिक दृष्टि से ध्यान में प्रगति होती है, निर्भीकता आदि गुणों का प्रकटन होता है और संसार में रहते हुए भी निष्पाप जीवन की भावना बलवती बनती है। विशेष • त्रासनी मुद्रा का उपयोग विघ्नों को दूर करने के लिए किया जाता है। • यह आराध्य देवों के नेत्रयुगल की पूजा करने से सम्बन्धित मुद्रा है । 21. पाश मुद्रा पाश शब्द बन्धन सूचक है। इस शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार 'पश्यते बध्यते जनेन इति पाश:' अर्थात जिसके द्वारा बांधा जाता है वह पाश कहलाता है। संस्कृत कोश में 'पाश' के अनेक पर्यायवाची कहे गये हैं जैसे डोरी, श्रृंखला, बेड़ी, फन्दा आदि। ये सभी बंधन के ही घोतक हैं। यहाँ पाश मुद्रा का रहस्य यह है कि जो डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रेत आदि क्रूर आत्माएँ प्रताड़ित या डराने-धमकाने के उपरान्त भी पुण्यकार्यों में बाँधा पहुँचाती हैं उन्हें बांधने के लिए यह मुद्रा की जाती है। स्पष्ट है कि इस मुद्रा को दिखाकर उन्हें बाँधने का मानसिक संकल्प किया जाता है। इससे आराधक धर्मानुष्ठान करते समय निश्चित रहता है। यहाँ बांधने से तात्पर्य उन्हें पीड़ित अथवा दुःखी करना नहीं है प्रत्युत इतस्ततः परिभ्रमण करते हुए रोकने से है। इसके पीछे हेतु यह है कि निम्न कोटि की आत्माएँ एक जगह स्थिर (बंधी) रहेंगी तो चाहकर भी उपद्रव नहीं कर सकेंगी। पाश मुद्रा एक तरह से लक्ष्मण रेखा का कार्य करती है जिससे भूत-प्रेत आदि आत्माएँ अपनी सीमा का लंघन कर शुभ क्षेत्र में नहीं आ सकतीं। पाश मुद्रा के द्वारा किया गया बंधन या घेरा इतना सशक्त होता है कि इस बन्धन को तोड़ना किसी के वश में नहीं होता ।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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