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________________ 42... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा इस मुद्रा के प्रयोग से आकाश तत्त्व की कमी हो तो आपूर्ति हो जाती है। • मानसिक जगत की अपेक्षा यह मुद्रा श्वास को नियंत्रित कर मन की चंचलता को कम करती है। भावनात्मक स्तर पर इस मुद्रा का प्रयोग साधक को आध्यात्मिक स्थिरता प्राप्त करवाता है। मणिपुर चक्र प्रभावित होने से व्यक्ति अहिंसा, सत्य, अचौर्य, क्षमा आदि गुणों का अनुसरण करता हुआ उत्तरोत्तर प्रगति करता है । विशेष • इस मुद्रा के माध्यम से शिखा स्थान का स्वरूप दिखाया जाता है अत: इसे शिखा मुद्रा कहा गया है। • हिन्दू मान्यतानुसार शिखा केन्द्र पर छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। उसमें से निरन्तर निर्धूम ज्योति प्रवाहित होती रहती है। सूक्ष्म अभ्यासी इस रहस्य का अनुभव कर सकते हैं। · आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार यह मुद्रा मस्तिष्क एवं छाती सम्बन्धी अवयवों पर नियन्त्रण करती है। • योग आचार्यों के अनुसार इससे यह मस्तिष्क भाग को संतुलित रखती है। एक्यूप्रेशर यौगिक चक्र के अनुसार आज्ञा चक्र प्रभावित होता है तथा लीवर एवं मुख सम्बन्धी कुछ भाग विकृत होने से बचते हैं। यह मुद्रा पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र और रक्तसंचरण को भी संतुलित करती है। 6. कवच मुद्रा यहाँ कवच का तात्पर्य शरीर के सुरक्षा आवरण से है । यह मुद्रा प्रतिष्ठा जैसे शुभ प्रसंगों में शरीर को सुरक्षित रखने के प्रयोजन से की जाती है। सामान्य तौर पर ऐसा कहा जाता है कि मिथ्याबुद्धि से ग्रसित देवी-देवता शुभ कार्यों में विक्षेप कर संतुष्ट होते हैं, वे स्वभावतः विघ्न संतोषी होते हैं। इस मुद्रा से विघ्नों का निवारण किया जाता है। सैनिक बाह्य कवच धारण करते हैं जबकि साधक पुरुष आभ्यन्तर कवच धारण करते हैं। बाह्य कवच खंडित हो सकता है, किन्तु आत्म भावों के कवच
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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