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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ...31 2. राज्यपृच्छा- प्रतिष्ठा उत्सव प्रारम्भ करने से पूर्व राजा की सम्मति प्राप्त करनी चाहिए। वर्तमान में राजा शब्द से तात्पर्य राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमन्त्री, मुख्यमन्त्री या शासकीय अधिकारी वर्ग है अतः इनमें से किसी की भी अनुमति लेनी चाहिए। राजाज्ञा अथवा शासन सरकार की स्वीकृति प्राप्त करने से प्रतिष्ठा महोत्सव में निम्न लाभ होते हैं • प्रतिष्ठा जैसा बृहद् उत्सव सुख-शान्ति पूर्वक सम्पन्न होता है। • उस गाँव या शहर सम्बन्धी कोई उपद्रव नहीं होता। • सरकार के द्वारा किसी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं होती। यदि बाधा उत्पन्न हो तो उसका शीघ्र निवारण हो जाता है। • राजा आदि की अनुमति प्राप्त करने पर उनकी उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है। राजा आदि की उपस्थिति से समस्त नगर जनों की उपस्थिति स्वयमेव हो जाती है। इस प्रकार सर्व जनों के सहयोग से उत्सव कई गुणा अधिक शोभायमान होता है। • राजा की अनुमति लेने पर सभी वर्गों के लोग सम्मिलित होते हैं। इसमें जातिवाद का भी कोई स्थान नहीं रहता, जो जैन धर्म की मूल दृष्टि है। • राज्य व्यवस्था का अनुपालन करने से राजा सदैव प्रसन्न रहता है तथा राजा की प्रसन्नता से सम्पूर्ण नगर में आनन्द एवं हर्षोल्लास का वातावरण बना रहता है। साथ ही उत्साह एवं उल्लासं पूर्वक किया गया अनुष्ठान नि:सन्देह सफल होता है। इस प्रकार राज पृच्छा से श्रीसंघ, नगरवासी एवं राजा तीनों अत्यन्त लाभान्वित होते हैं। __- 3. भूमि शुद्धि- पंचाशक प्रकरण के अनुसार प्रतिष्ठा उत्सव शुरू करने से पूर्व जिन मन्दिर के चारों ओर सौ हाथ जमीन को शुद्ध कर लेना चाहिए। उसके पश्चात उस स्थान पर प्रतिष्ठा के दिन तक दशांग आदि सुगन्धित धूप प्रज्वलित रखना चाहिए, इससे जिनालय के आस-पास का वातावरण निर्मल रहता है। __4. मण्डप निर्माण- मण्डप प्रतिष्ठा महोत्सव का एक महत्वपूर्ण अंग है। पूर्वकाल में प्रतिष्ठा महोत्सव से सम्बन्धित मण्डपों और वेदिकाओं का निर्माण
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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