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________________ 24... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन निष्पत्ति- ऊपर वर्णित चर्चा के आधार पर यह कहना आवश्यक है कि भिन्न-भिन्न प्रतिष्ठा कल्पकारों ने स्नात्रकार सुश्रावकों और पौंखण आदि कर्म करने वाली सुश्राविकाओं के सुलक्षण और योग्यता के सम्बन्ध में ‘अक्षताङ्गः' 'अक्षतेन्द्रियः' 'कुलीन:' 'धर्म बहुमानी' 'उपवासी' 'जीवित मातृपितृश्वसुरासुरादिभिः' जैसे सौभाग्यसूचक विशेषणों का प्रयोग किया है। आधुनिक प्रतिष्ठा तन्त्र वाहकों को इस सन्दर्भ में पूर्ण ध्यान देना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो श्रीअंजनशलाका-प्रतिष्ठा महोत्सव के प्रमुख अनुष्ठान जिन स्नात्रकारों के शुभ हाथ से सम्पादित करवाये जाएं और जिन सौभाग्यवती नारियों के द्वारा जिनेश्वर परमात्मा को पौंखणे की मंगल विधि की जाए उन स्नात्रकारों और सुश्राविकाओं में 'अक्षताङ्गः' आदि सुलक्षण अवश्य होने चाहिए। वर्तमान में जिनबिम्ब के नगर प्रवेश या नूतन चैत्य प्रवेश के शुभ अवसर पर अथवा रथयात्रा आदि के पुण्य प्रसंग पर प्राय: एक सन्नारी के द्वारा जिनेन्द्र परमात्मा के पौंखने की मंगल विधि की जाती है। वह किसी भी स्थिति में उचित नहीं है। प्राचीन प्रतिष्ठाकल्पों में चार सुश्राविकाओं के द्वारा पौंखने का विधान किया गया है। इसी के साथ उन सौभाग्यवती नारियों के माता-पिता और सासश्वसुर जीवित होने चाहिए, ऐसा अत्यावश्यक माना गया है जो लोक व्यवहार सम्मत भी है। दिगम्बर परम्परा में प्रतिष्ठा सम्बन्धी स्त्रियोचित कार्यों के लिए इन्द्राणी शब्द व्यवहृत है किन्तु उसके लिए भी निम्न गुणों का होना आवश्यक माना गया है। ____ आचार्य जयसेन प्रतिष्ठा पाठ के अनुसार इन्द्राणी सौभाग्यशालिनी, सर्वांगसुन्दर, बहुमूल्य वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित, सदाचारी, श्रेष्ठ कुलवन्ती, व्रत-नियम-संयमधारी, शीलवती, रात्रि भोजन एवं अभक्ष्य त्यागी, उत्तम गुणों को धारण की हुई, कृतकर्म की ज्ञाता, परमात्म भक्त और विनयवती इन गुणों से ओतप्रोत होनी चाहिए।25। यहाँ इन्द्राणियों की संख्या के सम्बन्ध में कोई निर्देश नहीं है किन्तु प्रतिष्ठा विधि के उपयोगी पात्रों में इन्द्र और इन्द्राणी शब्दों का उल्लेख है इससे सम्भव है कि सन्नारी के रूप में एक इन्द्राणी की अपेक्षा रहती होगी। दूसरे यजमान (प्रतिष्ठापक) की तरह यजमान की पत्नी की गणना भी प्रतिष्ठा के उपयोगी पात्रों
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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