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________________ प्रतिष्ठा के मुख्य अधिकारियों का शास्त्रीय स्वरूप ...17 व्यसनी, रौद्र कर्मकारी, मदिरा पान करने वाला, कृषि कर्म करने वाला, दूसरों का धन व्यय कर अपनी प्रशंसा कराने वाला, संघ निन्दक, राज्य का धन हरण करने वाला, निर्माल्य धन का उपयोग करने वाला ऐसे व्यक्तियों का धन प्रतिष्ठा कार्य में नहीं लगाना चाहिए।13 प्रतिष्ठा के मुख्य सूत्रधार इन्द्र का स्वरूप ___आचार्य पादलिप्तसूरि ने निर्वाण कलिका में प्रतिष्ठाचार्य गुरु, इन्द्र (स्नात्रकार) और शिल्पी इन तीनों को प्रतिष्ठा के मुख्य सूत्रधार के रूप में स्वीकार किया है। ___अन्य प्रतिष्ठाकारों की तुलना में आचार्य पादलिप्तसूरि ने इन्द्र, शिल्पी और प्रतिष्ठाचार्य का स्वरूप विस्तार से वर्णित किया है। उपर्युक्त निरूपण से इतना स्पष्ट होता है कि आचार्य पादलिप्तसूरि के मन में एक वस्तु निश्चित थी कि प्रतिष्ठा महोत्सव में प्रतिष्ठाचार्य महाराज, इन्द्र महाराज और शिल्पी की सर्वतोमुखी प्राधान्यता होना परम अनिवार्य है। प्रतिष्ठा कार्य में विशेष प्रभावोत्पादक कोई हो तो प्रतिष्ठाचार्य आदि त्रिपुटी ही है। त्रिपुटी जितने अंश में गुणसमृद्ध हो उतने अंश में प्रतिष्ठित जिनबिम्ब विशेष प्रभावकारी होते हैं। निर्वाणकलिका के मतानुसार इन्द्रोषऽपि विशिष्ट जाति कुलान्वितो युवा कान्त शरीरः कृतज्ञः रूप लावण्यादि गुणाधारः सकल जननयना नन्दकारी, सर्वलक्षणोपेतो, देवतागुरूभक्तः, सम्यक्त्व-रत्नालंकृतो, व्यसनाऽऽसंग पराड्.मुखः, शीलवान, पञ्चाणुव्रतादि-गुणपेतो, गम्भीरः, सितदुकूल परिधानः, कृतचन्दनाङ्गरागो, मालती-रचित-शेखरः, कनक-कुण्डलादि विभूषित-शरीर, तारहारविराजित-वक्षस्थलः स्थपति गुणान्वितश्चेति।। इन्द्र भी उत्तम जाति का कुलवान, युवावस्था वाला, मनोहर देह वाला, कृतज्ञ एवं लावण्य आदि गुणों का आधार, सर्वजन प्रिय, सकल सुलक्षणसम्पन्न, देव-गुरु का परम भक्त, धर्म के प्रति अखण्ड श्रद्धाशील, व्यसनों से सर्वथा विमुख, सदाचारशील, पंच अणुव्रतादि से युक्त, गम्भीर प्रकृति वाला, उत्तम श्वेत-वस्त्र धारक, चन्दनादि सुवासित द्रव्यों से विलेपित अंग वाला, मालती जैसे सुगन्धित पुष्पों द्वारा विभूषित मस्तक वाला, कनक-कुण्डल-कंकण
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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