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________________ दैर्घ्य दोला द्राविड़ tertilbringe F 664... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन देवायतन : देवों की पंचायत। : लम्बाई : झूला, हिण्डोला : अधिक श्रृंगों वाले प्रासाद की दीवार, जंघा। द्वारपाल : चौकीदार, दरवाजे का रक्षक। धनद : कुबेर, उत्तर दिशा के अधिपति देव। धरणी : गर्भगृह के मध्य नींव में स्थापित नवमी शिला। ध्वज : पताका, झंडा, ध्वजा। ध्वजादंड : ध्वजा लटकाने का दण्ड। ध्वझाधार : ध्वजा रखने का कलावा। ध्वांक्ष : काक, कौआ। नन्दिनी : पंच शाखा वाला द्वार। नन्दी : कोणी, भद्र के पास की छोटी कोनी। नर थर : पुरुष की आकृति वाली पट्टी, मानवाकृतियों की पंक्ति। नर्तकी : नाच करती हुई पुतली। नष्ट छंद : जिसकी तल विभक्ति बराबर न हो। नवरंग : वह महामंडप, जिसमें चार मध्यवर्ती एवं बारह परिधीय स्तम्भों की ऐसी संयोजना होती है कि उससे नौ खांचे बन जाते हैं। : हाथी : मध्य भाग। नाभिवेध : एक देव के सामने दूसरे देव की स्थापना करना अथवा एक मन्दिर के समक्ष दूसरा मन्दिर बनवाना नाभिवेध कहलाता है। नागरी : बिना रूपक की सादी जंघा। नाभि भेद : गर्भ भेद। नाभिच्छद : दो जाति की मिश्र आकृति वाली छत, एक प्रकार की अलंकृत छत, जिस पर मंजूषाकार सूच्यग्रों की डिजाइन होती है। नाल : पानी निकलने का परनाला, नाली। नाल मंडप : आवृत्त सोपानयुक्त प्रवेश द्वार, वलाणक। नाग नाभि
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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