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________________ उपसंहार ...655 के भी उपयोगी बनेगी? नहीं न! वैसे ही प्रतिष्ठा विधि-विधानों का भी विधिपूर्वक किया जाना अत्यंत आवश्यक है तथा इनका पालन करने से अचिंत्य लाभ की प्राप्ति होती है। प्रतिष्ठा-अंजनशलाका में अठारह अभिषेक करवाए जाते हैं इसका मूल हार्द क्या है? ___ अभिषेक यह तीर्थंकर परमात्मा के जन्मकल्याणक महोत्सव का अनुकरण है। परमात्मा का साक्षात जन्मोत्सव मनाते समय हजारों देवी-देवता गण विभिन्न तीर्थों एवं सरोवरों के जल से प्रभु का अभिषेक करते हैं। आज हमारा सामर्थ्य उतनी नदियों से जल लाने का नहीं है। अत: अठारह प्रकार के भिन्न-भिन्न जलों द्वारा महाभिषेक किया जाता है। इन जलों में मिश्रित औषधियों के प्रभाव से पत्थर में आंतरिक दूषण हो तो प्रकट हो जाते हैं। जिनबिम्ब निर्माण के समय अथवा उसे निर्माण स्थल आदि से लाते समय कोई आशातना हुई हो, अथवा मंदिर के वातावरण में गृहस्थ के अविवेक या मलीन परिणामों के कारण कोई अशुद्धि व्याप्त हो गई हो तो उसका निवारण भी इससे हो जाता है। इससे वातावरण शुद्ध, सुगंधित एवं आह्लादजनक बनता है। अभिषेक कर्ता व्यक्ति भी मानसिक स्थिरता, आध्यात्मिक उच्चता एवं शारीरिक स्वस्थता को प्राप्त करता है। कई लोग न्हवण जल को महाप्रभावी मानकर उसे घर में रखते हैं तथा विशेष प्रसंग या संकट के समय में उसका प्रयोग करते हैं क्योंकि प्रतिमा से निकलती हुई सकारात्मक ऊर्जा प्रक्षाल जल में अभिसंचरित हो जाती है। प्रतिष्ठा सम्बन्धित ऐसे अनेक विधि-विधान हैं जिनके विषय में शंकाएँ उपस्थित होती रहती हैं जैसे- जवारारोपण, कुंभस्थापना, कलशारोहण, अधिवासना आदि अनुष्ठान क्यों किए जाते हैं? इनका वैशिष्ट्य क्या है? इन अनुष्ठानों का जीवन एवं मंदिर पर क्या प्रभाव पड़ता है? आदि कई प्रश्नों के समाधान करने का प्रयत्न इस कृति में किया गया है। परिवर्तन यह प्रकृति का एक अटल नियम है। देश-काल परिस्थिति के अनुसार धर्म के क्षेत्र में भी अनेक परिवर्तन कभी लोकव्यवहार वश, तो कभी सामाजिक रीति-रिवाजों के प्रभाव से आए। अन्य धर्मियों द्वारा जैन धर्म स्वीकार करने के कारण भी कई परिवर्तन दोनों संस्कृतियों के मिश्रण के कारण आए। विवाह प्रसंगों में होने वाले अनेक मांगलिक उत्सवों का प्रवेश भी शनैः शनैः प्रतिष्ठा प्रसंगों में हुआ जैसे- पौंखण करना, कंकण डोरा बांधना, मेंहदी वितरण, लवण उतारना आदि।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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