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________________ उपसंहार ...653 उत्पन्न होते हैं। वहीं निर्मल भमि सजन विशुद्ध भावों का सृजन करती है एवं पुण्य में भी वर्धन करती हैं। जिन मंदिर सार्वजनिक संपत्ति है इसलिए उसके सुप्रभाव या दुष्प्रभाव भी सम्पूर्ण संघ पर देखे जाते हैं। इसी के साथ जिनमंदिर एक स्थायी संपत्ति एवं सांस्कृतिक धरोहर है। हमारे घरों की भाँति स्वेच्छा अनुसार उनका पुनः निर्माण बार-बार संभव नहीं है अत: उसके लिए उत्कृष्ट कोटि के द्रव्य का उपयोग होना चाहिए। जिनमंदिर निर्माण हेतु भूमि शुद्धि, दल शुद्धि, चूना, ईंट, पत्थर आदि की शुद्धि, भृतकानति संस्थान-कर्मचारी वर्ग की प्रसन्नता, स्वाशय वृद्धि-शुभ भावों में वृद्धि एवं यतना- इन पाँच नियमों का पालन जरूरी है। शास्त्रोक्त विधि से निर्मित जिनमंदिर अधिक मजबूत एवं प्रभावी होते हैं। जिनप्रतिमा जिनमंदिर की आभा है, जैसे आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नहीं है वैसे ही जिनप्रतिमा के बिना जिनमंदिर का भी कोई मूल्य नहीं है। जिनप्रतिमा जितनी प्रभावी होती है दर्शनार्थियों का मन उतना ही जुड़ता है अत: मूर्ति का सही निर्माण होना अत्यन्त आवश्यक है। ___मूर्ति निर्माण यद्यपि शिल्पी के द्वारा होता है परन्तु बिम्ब निर्माण हेतु उचित पाषाण (पत्थर) का चयन, सदाचारी, कर्म कुशल, अनुभवी, निर्लोभी शिल्पी का शोधन आवश्यक है। श्रावक को सदा शिल्पी का उत्साह वर्धन करते रहना चाहिए तथा अपनी आय के अनुसार उदार भाव से मूर्ति घड़न का शुल्क देना चाहिए, जिससे शिल्पी प्रसन्नचित्त होकर मूर्ति का निर्माण कर सके। जैसे माता के स्वभाव एवं आचरण का प्रभाव गर्भस्थित बालक पर पड़ता है वैसे ही शिल्पी के भावों के अनुसार जिन प्रतिमा में प्रभाव उत्पन्न होता है। वर्तमान में प्रसिद्ध मूर्ति भंडारों से निर्मित मूर्तियाँ ले ली जाती हैं या देकर बनवाई जाती हैं। परन्तु यहाँ भी मूर्ति निर्माता शिल्पी आमिष भोजी एवं व्यसनी न हो यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए। जिनप्रतिमा का सर्वोत्तम फल प्राप्त करने हेतु प्रतिष्ठा कारक श्रावक और नगर आदि नामों के साथ तीर्थंकर का राशि मिलान करना चाहिए। यहाँ शंका होती है कि प्रतिष्ठा-अंजनशलाका के पूर्व पंच कल्याणक महोत्सव के आयोजन का क्या अभिप्राय है? यह व्यावहारिक तथ्य है कि हम जब भी कोई वस्तु खरीदते हैं तो उससे पूर्व उसके विषय में सम्पूर्ण जानकारी करते हैं, ताकि उस वस्तु का पूर्ण उपयोग कर पाएं। इसी प्रकार नगर में जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा करने से पूर्व उनके विषय में सम्पूर्ण ज्ञान करने हेतु कल्याणक महोत्सव एक अनुपम प्रक्रिया है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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