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________________ सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का शास्त्रीय स्वरूप ...643 प्रतिष्ठा आदि विधानों में नवग्रह की स्थापना और पूजा की परम्परा अपनी समाचारी के अनुसार जीवित है। यदि स्थापत्य कला की दृष्टि से मनन करें तो नौवीं-दसवीं शताब्दी के आस-पास के मन्दिरों में इनके पट्ट आदि भी प्राप्त होते हैं जैसे पार्श्वनाथ मन्दिर खजुराहो, शान्तिनाथ मन्दिर देवगढ़, महावीर जिनालय धानेराव आदि अनेक स्थानों पर नवग्रह के पट्ट आज भी देखे जा सकते हैं। नवग्रह की स्थापना-पूजा क्यों और कब? नवग्रह एवं दश दिक्पाल की स्थापना प्रायः एक साथ की जाती है। इसमें क्रम की अपेक्षा पहले नवग्रह और उसके बाद दिक्पालों का आह्वान किया जाता है। इससे सिद्ध है कि दीक्षा, प्रतिष्ठा, व्रतारोपण, पदस्थापना, ध्वजारोहण, महापूजन आदि बृहद् एवं मंगल विधानों में नवग्रह का आराधन करते हैं। प्रतिष्ठा के दौरान नवग्रह देवों का स्मरण आदि करने पर दुष्ट ग्रहों की शान्ति होने से वैयक्तिक, पारिवारिक या सामाजिक विघ्न उपस्थित नहीं होते और इससे भूत-प्रेत आदि की बाधा भी दूर हो जाती है। इस प्रकार जिन शासन की महती प्रभावना एवं अशुभ कर्मों का शमन करने के उद्देश्य से यह पूजन किया जाता है। नवग्रह की स्थापना कहाँ और किसके द्वारा? यह वर्णन दश-दिक्पाल के समान जानना चाहिए। निर्वाणकलिका (पृ. 82) के अनुसार नवग्रहों का सचित्र स्वरूप निम्न प्रकार है1. सूर्य ग्रह वर्ण लाल कमल वाहन सात अश्व अधिपति पूर्व दिशा 2. चन्द्र ग्रह वर्ण श्वेत दाएँ हाथ में माला बाएँ हाथ में कुंडी वाहन दस श्वेत अश्व अधिपति वायव्य दिशा हाथ
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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