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________________ सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का शास्त्रीय स्वरूप ...635 16. महामानसी श्वेताम्बर श्वेत सिंह18 वर्ण वाहन भुजा बाएँ हाथ में दाएँ हाथ में दिगम्बर लाल हंस चार अक्षमाला, वरदान माला, अंकुश चार19 कुंडिका, ढाल वरदान, खड्ग दश दिक्पाल देवों का ऐतिहासिक अनुशीलन पूर्व-पश्चिम आदि दस दिशाओं के मुख्य अधिपति देव अथवा दसों दिशाओं के रक्षक देव दिक्पाल कहलाते हैं। इन्हें लोकपाल भी कहा जाता है। भारतीय धर्म की सभी परम्पराओं में दिक्पालों की यह अवधारणा प्राय: सामान्य रूप से स्वीकृत रही है। जैन परम्परा में दिक्पालों की अवधारणाओं का विकास लोकपालों की अवधारणा के पश्चात ही हआ है। जिस प्रकार ब्राह्मण परम्परा में दिक्पालों की अवधारणा थी, उसी प्रकार जैन परम्परा में लोकपालों की अवधारणा थी। तिलोयपण्णत्ति में चार लोकपालों का उल्लेख है उनके नाम हैंसोम, यम, वरूण और कुबेर, इन्हें वैश्रमण भी कहा गया है। जैन परम्परा में इन चारों का प्राचीनतम उल्लेख ऋषिभाषित (4-3वीं शती ई.प.) में अर्हत् ऋषि के रूप में मिलता है। तिलोयपण्णत्ति (3/71) में इन लोकपालों में सोम को पूर्व दिशा का, यम को दक्षिण दिशा का, वरूण को पश्चिम दिशा का और कुबेर को उत्तर दिशा का लोकपाल माना गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि चार लोकपालों की कल्पना से ही अष्ट दिक्पालों की कल्पना अस्तित्व में आई। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार इन्हीं चार लोकपालों की अवधारणा को
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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