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________________ 2... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन पइट्ठा (प्रतिष्ठा) के निम्न अर्थ किये गये हैं- आदर, सम्मान, स्थापना, अवस्थान, स्थिति और मूर्ति में ईश्वर के गुणों का आरोपण। पइट्टव (प्रति+स्थापय्) का भावार्थ मूर्ति आदि की विधिपूर्वक स्थापना करना है। वस्तुत: 'प्रतिष्ठा' शब्द में पूर्वोक्त सभी अर्थ घटित होते हैं। स्थानांग टीका और पंचाशक टीका में प्रतिष्ठा शब्द अवस्थान यानी किसी वस्तु या देव प्रतिमा को अच्छी तरह से अवस्थित करने के अर्थ में है। • एक अर्थ के अनुसार 'प्रतिष्ठापनं प्रतिष्ठा'- स्थापित करने योग्य पूजनीय देवों की स्थापना करना प्रतिष्ठा है। • प्रतिष्ठा शब्द की दूसरी व्युत्पत्ति के अनुसार 'प्रतिष्ठान्त्यस्यामिति प्रतिष्ठा' जिसमें ईश्वरीय गुणों का स्थैर्य किया जा रहा है वह प्रतिष्ठा है। सार रूप में कह सकते हैं कि पूज्य प्रतिमा में तदयोग्य शक्तियों का आरोपण करते हुए उनकी विधिपूर्वक स्थापना करना प्रतिष्ठा कहलाता है। प्रतिष्ठा की सैद्धान्तिक परिभाषाएँ • सूत्रकृतांग टीका में प्रतिष्ठा का आत्मलक्षी अर्थ करते हुए कहा गया है कि "संसार भ्रमण विरतौ" संसार परिभ्रमण से विरत (निवृत्त) करने वाली क्रिया का नाम प्रतिष्ठा है। . धवलाटीका में धारणा ज्ञान के नामान्तर के रूप में 'प्रतिष्ठा' शब्द का उल्लेख है। तदनुसार “प्रति तिष्ठन्ति विनाशेन विना अस्याअर्थो इति प्रतिष्ठा"__ जिसमें पदार्थ विनाश के बिना प्रतिष्ठित रहते हैं वह प्रतिष्ठा है। यह परिभाषा प्रतिमा स्थापना के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त की जा सकती है चूंकि प्रतिमा में आरोपित गुण सदैव विद्यमान रहते हैं। • आचार्य पादलिप्तसूरि ने निर्वाणकलिका में प्रतिष्ठा का निम्न लक्षण बतलाया है "तत्र स्थाप्यस्य जिन बिम्बादेर् भद्रपीठादौ विधिना न्यसनं प्रतिष्ठा।" स्थाप्य जिनबिम्ब आदि का योग्य आसन पर विधिवत स्थापन करना प्रतिष्ठा कहलाता है। • आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठासारोद्धार में उपर्युक्त अर्थ का अनुकरण करते हुए प्रतिष्ठा की किंचित विस्तृत परिभाषा दी है
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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