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________________ सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का शास्त्रीय स्वरूप ...595 देवलोक से तिरछालोक में गमन करने के कारण सहायता क्यों नहीं कर सकते? जैन स्थापत्य कला में शासन देवी-देवता एक अभिन्न अंग के रूप में हैं। प्राचीनतम प्रतिमाओं में जैन शासन के देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ सारे देश में मिलती हैं। अनेक स्थानों पर शासन देव-देवियों के मन्दिर अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनमें हुम्मच पद्मावती, आरा एवं नरसिंह राजपुरा की ज्वालामालिनी देवी, महडी में घंटाकर्ण महावीर आदि विख्यात है। पुरातत्त्व दृष्टि से भी जैन शासन देव-देवियों की प्रतिमाओं का अपना विशिष्ट स्थान है। इस प्रकार अनेक दृष्टियों से शासन प्रभावक देव-देवियों की उपादेयता सिद्ध होती है। दूसरा हेतु यह है कि शासन देवी-देवता परमात्मा के प्रति दृढ़ श्रद्धावान होने से जिनालय एवं भक्तगणों पर आने वाली विपदाओं को पूर्व से ही सूचित कर देते हैं इससे लौकिक विघ्नों का भी निवारण होता है। अतएव इनकी स्थापना आवश्यक प्रतीत होती है। • प्रश्न हो सकता है कि यदि शासन देवी-देवता जिनमन्दिर आदि की रक्षा करते हैं तो फिर मन्दिरों में बढ़ती चोरियों आदि का कारण क्या है? शासन देवी-देवता परमात्मा का आदर-सत्कार होने से तुष्ट होते हैं किन्तु उनकी आशातना होने पर वे रूष्ट हो जाते हैं और फिर विघ्न निवारण में कार्यकारी नहीं बनते। दूसरे, वर्तमान में प्राय: भक्ति-श्रद्धा में वह ताकत नहीं रह गई है जो उन्हें सहायता के लिए शीघ्र उपस्थित कर सकें। क्योंकि ये तो अधिकांश अपने ऐश्वर्य भोग या आनन्द क्रीड़ा में मग्न रहते हैं। इनका सच्चे मन से सुमिरण करने पर ही ये सहायक बनते हैं। वर्तमान में बढ़ती आशातनाओं एवं अविवेक के कारण भी इनका प्रभुत्व मन्द हो गया है। दुष्काल के प्रभाव से धर्मक्षेत्र में घटती लोगों की रुचि, कर्त्तव्य हीनता एवं पूजारियों के भरोसे सब कार्य होना भी चोरी आदि के प्रमुख कारण हैं। जैन धर्म में वीतराग परमात्मा के साथ उनके शासन देव का भी प्रमुख स्थान रहा हुआ है। शिल्पकला के आधार पर इसकी ऐतिहासिकता भी सिद्ध हो जाती है। जैन वांगमय अनुसार श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रचलित चौबीस तीर्थंकरों के शासन देव-देवियों के नाम इस प्रकार हैं
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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