SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 658
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 592... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन इसी कारण इस अध्याय में देवी-देवताओं का शास्त्रीय स्वरूप स्पष्ट किया जा रहा है जिससे जन समुदाय में परमात्म भक्ति का वर्धन हो तथा जिनेश्वर परमात्मा एवं देवी-देवताओं के बीच रही भेद रेखा और उनके स्वरूप का सम्यक ज्ञान हो। चौबीस तीर्थंकरों के चरणों में करोड़ों देवी-देवता हाजिर रहते हैं किन्तु मुख्य रूप से एक देव युगल उनके महिमा वर्द्धन एवं विघ्न हरण आदि के लिए सदा तत्पर रहता है और तीर्थंकर परमात्मा के सेवक एवं भक्तों की रक्षा करता है। इन्हें शासन देव-देवी अथवा शासन यक्ष-यक्षिणी की संज्ञा दी गई है। इनका मुख्य कार्य तीर्थंकरों की सेवा में उपस्थित रहते हुए जिन शासन की प्रभावना करना है। इसी कारण जिन धर्मानुयायी धर्मरक्षक देवी-देवताओं की विशेष आराधना करते हैं। ___ यदि शासन देवी-देवताओं के सन्दर्भ में जैन आगम साहित्य एवं उससे परवर्ती साहित्य का अध्ययन किया जाए तो कल्पसूत्र आदि आगमों में तथा नियुक्ति एवं चूर्णिकाल (छठी शती) तक भी इनका कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता। ___आइकॉनोग्राफी ऑफ जैन डायटिज के अनुसार सर्वप्रथम यक्ष और यक्षिणी के रूप में सर्वानुभूति एवं अम्बिका का उल्लेख मिलता है इस प्रकार मध्यकाल में मुख्य रूप से यक्षिणी की प्रसिद्धि हुई। तदनन्तर श्वेताम्बर ग्रन्थों में शासन देवी-देवता का उल्लेख सर्वप्रथम 11वीं-12वीं शती के निर्वाणकलिका में प्राप्त होता है। तत्पश्चात इसी परम्परा के कहावली, मंत्राधिराजकल्प, त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र, प्रवचन सारोद्धार, आचार दिनकर, रूपमण्डन (देवतामूर्ति प्रकरण) आदि में इसका वर्णन दृष्टिगत होता है। यद्यपि दिगम्बर परम्परा में तिलोयपण्णति (लगभग छठी-सातवीं शती) में इनका उल्लेख मिलता है, किन्तु विद्वानों की दृष्टि से यह अंश बाद में प्रक्षिप्त है। यद्यपि चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती आदि के अंकन और स्वतन्त्र मूर्तियाँ लगभग नवीं शताब्दी में मिलने लगती हैं, किन्तु चौबीस तीर्थंकरों के 24 यक्षों एवं 24 क्षिणियों की स्वतंत्र लाक्षणिक विशेषताएँ लगभग 11-12वीं शताब्दी में ही निर्धारित हुई है। दिगम्बर परम्परा के प्रतिष्ठासार संग्रह, प्रतिष्ठासारोद्धार, प्रतिष्ठातिलकम्, अपराजित पृच्छा आदि में भी इसका वर्णन किया गया है। ऐसे तो नौवीं-दसवीं शती के कन्नड़ कवि रत्न ने भी यक्षों और शासन देवियों के
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy