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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक... ...587 आजकल प्रतिष्ठाओं के स्नात्रकारों का बहुधा अभाव ही है। वहाँ पर यतियों या विधिकारकों द्वारा ही स्नात्रकार एवं प्रतिष्ठाचार्य की भूमिका अदा की जाती है। उन लोगों में प्रतिष्ठाचार्य की शास्त्रोक्त योग्यता एवं अनुभव होना असंभव है। कई बार उनमें स्नात्रकार के योग्य लक्षण भी नहीं होते अतः ऐसी प्रतिमाओं का अतिशय युक्त या प्रभावशाली होना संभव नहीं है । 4. स्नात्रकार अच्छे होने पर भी प्रतिष्ठाचार्य यदि अयोग्य हो तो प्रतिष्ठा अभ्युदयजननी नहीं हो सकती, क्योंकि प्रतिष्ठा के तंत्रवाहकों में प्रतिष्ठाचार्य का स्थान मुख्य होता है। योग्य प्रतिष्ठाचार्य शिल्पी एवं इन्द्र सम्बन्धी कमजोरियों को सुधार सकता है, पर अयोग्य प्रतिष्ठाचार्य की कमी कोई पूर्ण नहीं कर सकता। इसलिये अयोग्य प्रतिष्ठाचार्य के हाथों से हुई प्रतिमा प्रतिष्ठा भी अभ्युदयजनी नहीं होती। 5. प्रतिष्ठा की सफलता में शुभ समय भी अनन्य सहयोगी है। जैसे अनुरूप समय में बोया हुआ बीज उगता है, फलता-फूलता है एवं अनेक गुणा समृद्धि करता है। वैसे ही अच्छे समय में की हुई प्रतिष्ठा उन्नतिकारक होती है। इसके विपरीत अवर्षण काल में धान्य बोने से बीज नष्ट होता है और परिश्रम निष्फल हो जाता है। यही सिद्धान्त प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए। ज्योतिष का रहस्य जानने वाले और ज्योतिष शास्त्र से अनभिज्ञ प्रतिष्ठाचार्य के मुहूर्त्त में होने वाली प्रतिष्ठाओं की सफलता में भी अन्तर देखा जाता है । जहाँ शुभ लग्न, शुभ षड्वर्ग अथवा शुभ पंचवर्ग में और पृथ्वी अथवा जल तत्त्व में प्रतिष्ठा होती है वहाँ वह अभ्युदय - कारिणी होती है। यदि पूर्वोक्त शुभ लग्न में नवमांश, षड्वर्ग, पंचवर्ग और तत्त्वशुद्धि न हो तो ऐसे समय में की गई प्रतिष्ठा उतनी सफल नहीं होती । 6. प्रतिष्ठा के उपक्रम में अथवा बाद में भी प्रतिष्ठा कार्य के निमित्त अपशकुन हों तो निर्धारित मुहूर्त में प्रतिष्ठा जैसे महाकार्य नहीं करने चाहिए, क्योंकि दिनशुद्धि और लग्नशुद्धि का सेनापति 'शकुन' माना गया है। सेनापति की इच्छा के विरुद्ध जैसे सेना कुछ भी कर नहीं सकती, उसी प्रकार शकुन के विरोध में दिनशुद्धि और लग्नशुद्धि भी शुभ फल नहीं देते। इस विषय में व्यवहार प्रकाशकार कहते हैं करणस्य च । नक्षत्रस्य मुहूर्त्तस्य, तिथेश्च चतुर्णामपि चैतेषां शकुनो दण्डनायकः ।।1।।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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